आध्यात्मिक दुःखके भिन्न कारण होते हैं (भाग – १)


कुछ लोगोंको लगता है कि उनके सर्व कष्ट ग्रह-पीडाके कारण होते हैं, तो कुछ लोगोंको लगता है कि उनके सर्व कष्ट जादू-टोना, जारण-मारण इत्यादि किसीने उनपर किया है; इसलिए हो रहा है, तो कुछ लोग अपने सर्व कष्टोंका कारण पितृ-दोष या प्रारब्धको देते हैं ! वस्तुत: जिन कष्टोंका समाधान बुद्धिसे सम्भव नहीं होता, उन्हें आध्यात्मिक कष्ट कहते हैं और उसके भिन्न कारण होते हैं, इस लेख श्रृंखलामें अपने समष्टि साधनाकालमें मुझे अनुभव हुए ऐसे ही कुछ कष्टोंके विश्लेषणकर, आपको यह बतानेका प्रयास करेंगे कि कष्टोंके भिन्न कारण होते हैं ! मई १९९० से मेरे सूक्ष्म इन्द्रियोंके जागृत होनेके कारण भगवानजीको ध्यान करनेसे ही मुझे इसके कारण ज्ञात हो जाते थे और इससे मुझे आध्यात्मिक शोध करनेमें अत्यधिक सहायता मिली !
अगस्त २०१२ में धर्मयात्राके मध्य चण्डीगढके पास ही कसौली नामक एक स्थानपर जाना हुआ । वहांके एक साधकने, सेनामें प्रवचन हेतु मुझे बुलाया था । मैं जिनके घर रुकी थी, एक दिवस वहां एक स्त्री मुझसे मिलने आई ! वह एक भयावह चर्मरोगसे पीडित थी, जिसे प्रथम दृष्टिमें देखकर कोई भी भयभीत हो जाए । उन्होंने कहा, “मैंने पिछले ५० वर्षोंमें अनेक चिकित्सकोंसे इस रोगका उपचार करवाया है; किन्तु यह ठीक नहीं होता और बढता ही जाता है । अब मेरी पुत्री, जो २५ वर्षकी है, उसे भी हो गया है ! मेरे विवाह होनेके पश्चात मुझे यह रोग हुआ था, उसका तो विवाह भी नहीं हुआ है; इसलिए मैं बहुत चिंतित हूं ! ऐसा हमारे साथ क्यों हो रहा है ?, हम इसका कारण जानना चाहते हैं ।”
रोगका कारण शारीरिक नहीं था, यह मुझे समझमें आ गया था ! सूक्ष्मसे जब कारण जाननेका प्रयास किया तो मैं आश्चर्यचकित रह गई !
मैंने उन स्त्रीसे पूछा, “क्या आपकी माता और उनकी माताजीको भी यह रोग है ?” तो आश्चर्यचकित होकर मुझसे ही पूछने लगीं, “हां, किन्तु आपको यह कैसे पता चला ? मैंने उनसे कहा, “मेरा सूक्ष्म परीक्षण कहता है, यह रोग तीन पीढियोंसे आपके यहां मात्र स्त्रियोंको हो रहा है और वह भी मायके पक्षसे चली आ रही है; इसलिए आपसे यह पूछ रही हूं !”
उन्होंने कहा, “मेरी नानीको यह रोग अकस्मात हो गया था और उसके कुछ वर्ष पश्चात मेरी माताजीको हो गया था, तदोपरान्त मुझे हो गया और अब मेरी पुत्रीको हो गया है !” वे इसका कारण जानना चाहती थीं ! मैंने जब सूक्ष्मसे इसका उत्तर जानना चाहा तो उत्तर आया, “ब्रह्मश्राप” ! मैंने उनसे पूछा, “क्या आपकी नानीको किसीने शापित किया था ?” वस्तुत: एक सिद्ध तपस्वीको प्रचण्ड गर्मीके कारण प्यास लगी थी और वे इस स्त्रीकी नानीके घर जल मांगने हेतु द्वारपर आए थे; किन्तु उन्होंने उस प्यासेको दुत्कारकर भगा दिया, जिससे उस सिद्ध पुरुषने उस स्त्रीको शापित कर दिया !
इस प्रसंगसे दो बातें सीखने हेतु मिलती हैं – एक तो कि अतिथि देवस्वरुप होता है, उसका तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए और दूसरी कि यदि कष्टका स्वरुप आध्यात्मिक हो तो बौद्धिक प्रयासोंसे कष्टका समाधान नहीं मिलता है !
सिद्ध अनेक बार क्रोधित होनेपर शापित करते हैं, इसका उल्लेख हमारे धर्मग्रन्थोंमें मिलता है; किन्तु एक सिद्धद्वारा इतना भयानक श्राप देनेकी यह मैंने प्रथम घटना ही देखी थी !



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution