कोलम्बिया विश्वविद्यालयने माना, सुश्रुत शल्यचिकित्साके जनक थे !!


जनवरी १२, २०१९

 

प्राचीन भारतीयमें नाक और शल्यचिकित्साकी उत्पत्तिके बारेमें विचखर करें । वर्तमान समयमें ‘प्लास्टिक शल्य-चिकित्सा’ एक आधुनिक विलासिता है । यह ज्ञात हुआ है कि प्रसाधन और शरीरकी पुनर्संरचनाका मूल २५०० से अधिक वर्षोंतक वापस चला जाता हैं ।

यह सामान्‍य धारणा है कि ‘प्लास्टिक शल्य-चिकित्सा’में ‘प्लास्टिक’ एक कृत्रिम सामग्रीको सन्दर्भित करता है, जबकि यह वास्तवमें ग्रीक शब्द ‘प्लास्टिकोस’से निकलता है, जिसका अर्थ है ढालना या रूप देना । ६ वीं शताब्दी ईसा पूर्वमें हुए सुश्रुत नामके एक भारतीय चिकित्सकको व्यापक रूपसे ‘शल्य-चिकित्साका जनक’ माना जाता है । उन्‍होंने चिकित्सा और शल्य-चिकित्सापर विश्वके आरम्भिक कार्योंमें प्रथम बार विस्‍तारसे लिखा । यही कारण है कि कोलंबिया विश्वविद्यालयने माना है कि सुश्रुत  शल्य-चिकित्साके जनक थे ।

सुश्रुत संहितामें ११०० से अधिक रोगोंके बारेमें जानकारी दी गई है । रोग प्रजननमें सैकडों औषधीय पौधोंके उपयोग और सर्जिकल प्रक्रियाओं बारेमें निर्देश दिए गए थे, जिसमें तीन प्रकारकी त्वचाकी कलम और नाकके पुनर्निर्माण सम्मिलित है । त्‍वचा कलममें त्वचाके टुकडोंको शरीरके एक भागसे दूसरे भागमें लगाया जाता है ।

सुश्रुतका ग्रन्थ माथेकी लटकती हुर्इ त्‍वचाके टुकडेका प्रयोग नाकका संधान करनेके लिए प्रथम लिखित अभिलेख (रिकॉर्ड) मिलता है, जिसमें एक तकनीक जो आज भी उपयोगकी जाती है, जिसे माथेसे त्वचाकी पूरी मोटाईका भाग नाकको पुनः बनानेके लिए उपयोग किया जाता है । उस समय उस प्रक्रियाकी आवश्यकतावाले रोगियोंमें सामान्यतया वे लोग सम्मिलित होते थे, जो चोरी या व्यभिचारके लिए दण्डके रूपमें अपनी नाक खो चुके थे ।

वर्तमान समयमें शल्यचिकित्सक आघात, संक्रमण, जलनेके साथ-साथ ऊतकोंकी सुरक्षात्मक परतोंको खोने वाले क्षेत्रोंको पुनर्जीवित करनेके लिए त्वचाके कलमका उपयोग करते हैं, साथ ही उन क्षेत्रोंको पुनर्स्थापित करनेके लिए जहां हस्तक्षेपसे त्वचाको हानि हुई है, जैसा कि मेलेनोमा (त्‍वचा सम्बन्धी ट्यूमर) हटानेसे हो सकता है । आश्चर्यजनक रूपसे इन तकनीकोंको सुश्रुत संहितामें विस्‍तारसे समझाया गया है और विश्व इससे प्रेरणा लेता है ।

सुश्रुत संहितामें शल्यचिकित्सासे सम्बन्धित विभिन्न सन्दर्भको विस्तारसे बताया गया है । इस पुस्तकके अनुसार सुश्रुत शल्य चिकित्साके किए १२५ से अधिक स्वनिर्मित उपकरणोंका उपयोग किया करते थे, जिनमे चाकू, सुइयां, चिमटियांकी भांति ही थे, जो इनकेद्वारा स्वयं खोजे गए थे ।

सुश्रुत संहितामें प्रसाधन शल्यचिकित्सा, नेत्र चिकित्सामें मोतियाबिंदकी शल्यचिकित्सा करनेमें ये पूर्ण दक्ष थे तथा अपनी इस रचनामें पूर्ण प्रयोग विधि भी लिखी है । इसके अतिरिक्त शल्यचिकित्साद्वारा प्रसव करवाना, टूटी अस्थियोंको जोडना वे भली-भांति जानते थे । ये अपने समयके महान शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग चिकित्सक थे ।

 

“जिस शल्यचिकित्साकी खोज अभी कुछ वर्ष पूर्व ही आजके चिकित्सकोंने की, वह महर्षि सुश्रुत शताब्दियों पूर्व ही अपने ग्रन्थमें लिख चुके हैं और भारतके लोग कहते हैं कि हमें तकनीक बाहरसे लानेकी आवश्यकता है ! क्या यह हास्यस्पद नहीं ? सहस्रों वर्षोंसे दासताकी बेडियोंमें बंधे भारतवर्षको तकनीक बाहरसे लानेकी नहीं वरन देशमें ऋषियोंद्वारा प्रदत्त ज्ञानपर अनुसन्धान करनेकी आवश्यकता है । ध्यान रहे कि विश्वके पास जो कुछ भी है, वह प्रत्यक्ष व परोक्ष रूपसे भारतकी ही देन है तो हिन्दुओ ! अपनी संस्कृतिपर गर्व करना सीखें !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

स्रोत : जागरण



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