पिछले दो वर्षोंसे सर्दीकी ऋतुने मुझे बताया कि मेरा स्वास्थ्य कितना बिगड चुका है | वर्ष २०१७ की सर्दीमें मैं देहलीमें थी, तभी मेरे लिए वो दो माह निकालना बहुत कठिन था, उसके पश्चात मैंने सतर्क होकर दस माह अनेक प्रयास किए तब भी इस बार इन्दौरमें, जहां देहलीकी अपेक्षा कम सर्दी थी, मेरे लिए दो माह बहुत कष्टप्रद थे ! कुछ दिवस पूर्व पुनः एक आयुर्वेदिक वैद्यके पास गई थी, सोचा वे नाडी शास्त्रज्ञ हैं तो उनसे कुछ सीखने हेतु मिलेगा; किन्तु वे दिखावटी नाडी शास्त्रज्ञ निकले ! उन्हें भी आधुनिक जांचकी सहायता लेनी पडी और अन्य चिकित्सकों समान उन्होंने बहुतसे रोगोंकी आशंका व्यक्त की एवं कुछ जांचके लिए कहा; किन्तु सदैव समान जांचमें कुछ भी निकलकर नहीं आया, पिछले नौ वर्षोंसे सभी वैद्य सारे जांचके पश्चात मुझे मात्र अखरोट और बादाम खाने रूपी औषधि बताते हैं; क्योंकि जांचमें मात्र मेरा अच्छा ‘कोलेस्ट्रोल’ कम आता है, शेष सब एक स्वस्थ शरीरका जैसा होना चाहिए, वैसे ही होता है ! मुझे ज्ञात है, कारण आध्यात्मिक होनेसे वे जांचमें नहीं पकडमें आते हैं; किन्तु सबको सिखानेके लिए ये समय-समयपर करना भी आवश्यक है !
सूक्ष्म जगतमें कार्य करनेका परिणाम अब समझमें आता है ! इतनी सजग और सतर्क रहती हूं, तब यह स्थिति है ! एक स्वस्थ वैदिक दिनचर्याके पालनके साथ ही शरीर विज्ञान, आयुर्वेद, वैकल्पिक चिकित्सा, आध्यात्मिक उपचार इन सब विषयोंसे स्वयंको स्वस्थ रखनेके साथ ही विशेषज्ञों और संतोंके सुझावका भी पालन करती हूं, २४ घंटे ‘सत’में रहती हूं, कभी विचार करती हूं कि यदि मैं इन सबसे अनभिज्ञ रहती तो न जाने अनिष्ट शक्तियां मेरे शरीरकी क्या दुर्गति करतीं ! इस बार कुम्भमें चाहकर भी जानेका साहस नहीं कर पाई ! करूं क्या ?, शरीर इतना दुर्बल हो गया है कि न वह सर्दी और न ही गर्मीकी तीव्रताको सहन कर पाता है और अब तो १०० किलोमीटरकी यात्रा करनेसे पूर्व भी सोचना पडता है ! सोचती हूं, क्या मैं वही तनुजा हूं जो एक सप्ताहमें सामान्य बसोंमें १००० किलोमीटर घूम-घूमकर चार-चार जनपदोंमें धर्मप्रसार किया करती थी ! अच्छा हुआ, जब शक्ति थी तो थोडी सेवा कर पायी ! किन्तु अब भी इस दुर्बल देहसे भी ईश्वर थोडे प्रमाणमें धर्म कार्य करवा लेते हैं, यह उनकी विशेष अनुकम्पा है !
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