देहलीकी मस्जिदके ध्वनिप्रसारक यन्त्रोंसे लोग त्रस्त, न्यायालयसे बन्द करवानेकी विनती !


मार्च २२, २०१९

 

राष्ट्रीय हरित अधिकरणने (एनजीटी) कहा है कि निर्धारित मानदंडोंसे अधिक ध्वनि प्रदूषण एक गम्भीर और दण्डनीय अपराध है ।  इसके साथ ही अधिकरणने पुलिससे कहा है कि वह ऐसे स्थानोंका अभिज्ञान करे और उल्लंघनकर्ताओंके विरुद्ध कडी कार्यवाहीके लिए एक निगरानी प्रणाली स्थापित करे । निकायके अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयलकी अध्यक्षतावाली पीठने पुलिस आयुक्तको निर्देश दिया कि योजनाका कार्यान्वयन करनेवाले अधिकारियोंकी चौकसीकी जाए । पीठने एक माहके भीतर प्रतिवेदन (रिपोर्ट) विद्युतपत्र (ईमेल) करनेको भी कहा ।

पीठने कहा कि नागरिकोंको शांतिपूर्ण पर्यावरणका संवैधानिक अधिकार है और निर्धारित मानदंडोंसे अधिक ध्वनि प्रदूषण गंभीर दंडनीय अपराध है । इसके लिए पर्याप्त सावधानी और सुधारात्मक कार्यवाहीकी आवश्यकता है । ‘एनजीटी’की यह टिप्पणी एक याचिकाकी सुनवाईके मध्य आई, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पूर्वी देहलीमें मस्जिदोंमें उच्च ध्वनि यन्त्रोंके (लाउडस्पीकरों) अवैध उपयोगसे उनके आसपासके क्षेत्रोंमें रहने वाले निवासियोंका स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है ।

विश्वमें सम्भवतः ७० कोटि लोग ध्वनि प्रदूषणसे ग्रसित हैं।
पीठ, गैर-सरकारी संगठन ‘अखंड भारत मोर्चा’की याचिकापर सुनवाई कर रही थी ।  याचिकामें आरोप लगाया गया है कि कुछ मस्जिदोंकी गतिविधियां पर्यावरण (संरक्षण) विधान,१९८६ और ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, २०००का उल्लंघन है ।

 

“भारतमें बढती हुई मस्जिदोंके साथ यह समस्यामें वृद्धि हुई है; क्योंकि ५-५ समय गला फाडकर अजान की जाती है और निकटवर्ती हिन्दुओंका जीवन दुष्प्राय हो जाता है; परन्तु यह प्रकरण अचम्भित कर रहा है कि न्यायालयोंको यह अब ध्यानमें आ रहा है कि अजानके ५ समयके शोरसे हिन्दुओंको उद्विग्नता हो रही है और आज यह ध्वनिप्रसारककी शास्त्रविरुद्ध कृति प्रत्येक स्थानपर फैलती ही जा रही है ! न्यायालय इसपर कडा पग उठाए और समूचे भारत वर्षमें इस ध्वनिप्रसारक यन्त्रको प्रतिबन्धित करें; विशेषतः जहां अजान होती है; क्योंकि सम्पूर्ण दिवसके शोरमें नहीं रहा जा सकता है, यह तो सामान्यसा तथ्य है, जो हमारे राज्यकर्ताओंके ध्यानमें ही नहीं आ रहा है !”-सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : नभाटा



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