गुरुसेवकका पद इस ब्रह्माण्डका सर्वोच्च पद होता है, उसे पानेके पश्चात कुछ भी पानेकी इच्छा शेष नहीं रहती है | गुरुसेवामें लीन रहनेमें जो आनंद आता है वह किसी भी योगमार्ग से साधना करनेपर नहीं आता है, यह अवस्था एक प्रकारसे जागृत समाधिकी होती है और एक गुरुसेवकको कुछ नहीं चाहिए होता, इस सम्बन्धमें यह शास्त्र वचन सटीक बैठता है –
नाभिनन्देत मरणं नाभिनन्देत जीवितम् ।
कालमेव प्रतीक्षेत निदेशं भृतको यथा ||
अर्थ : गुरुसेवक न तो मृत्युकी इच्छा करता है और न ही जीवित रहनेकी कामना । वह बस समयकी प्रतीक्षा करता है, जैसे कि सेवक अपने स्वामीके निर्देशोंका ।
अतः जिन्हें गुरुसेवाका सौभाग्य मिला है या मिलता है, वे सौभाग्य मानकर उसे कृतज्ञताके भावसे करें !
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