१. जब वर्ष २०१० मैं तनुजा मांके साथ जगद्धात्रि पूजामें एक समीपके गांवमें गई और अकेले ही मन्दिरके भीतर जाकर जैसे ही प्रणाम किया वैसे ही वहां जितनी भी मूर्तियां थीं मुझे सभीमें तनुजा मांका प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगा ।
२. दिनाक २५ जुलाई २०१० में एक दिन हमारे घरमें कोई भी नहीं था और मैं अपनी गायकेपास कुछ कार्य करने गई, पता नहीं उसे अक्स्मात् क्या हो गया वो भागने लगी औरउसका रस्सा मेरे हाथमें फंस गया मुझे ऐसा लगा जैसे अब तो मेरे प्राण हीनिकल जाएंगे तभी मेरे मुंहसे ‘मौसी’ (मैं तनुजा मांको मौसी कह कर संबोधितकरती हूं) निकला और वो रस्सा अपने आप चमत्कारिक ढंगसे खुल गया ।
३. दिनांक ८ जून २०१० में एक रात्रि मैं सो रही थी तो मुझे ऐसालगा जैसे मुझे मेरी मां कह रही हो कि मेरे पैर दबा दो जब मैं उनके पैर दबानेलगी तो मैंने देखा कि उनका पैर तो अत्यधिक गोरा है; जबकि मेरी मां तो सांवली हैं तोमैंने आश्चर्यसे मांके मुखके ऊपर देखा तो तनुजा मां, मुझे देख कर मुस्करा रही थी, यह दृष्टान्त होते ही मेरास्वप्न टूट गया । – कुमारी महारानी, झारखण्ड
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