प्रेरक कथा – गुरु आज्ञापालनकर चरवाहासे ऐसा बना वह सन्त


गुजरातके सुरेन्द्रनगर जिलेके कांत्रोडी गांवमें मेघजी नामका दरिद्र बालक एक सेठके यहां गाय चरानेकी चाकरी करता था । एक दिवस जंगलमें गाय चराते समय उसे गुफामें एक साधनारत  महात्माजीके दर्शन हुए । मेघजीने महात्माजीको प्रणाम किया । महात्माजीने उसके शीशपर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया और कहा, “बालक मेघजी, मुझे गायका दूध पीना है, मुझे एक लोटा दूध दुहकर दो ।”

मेघजीको अत्यधिक आश्चर्य हुआ कि, महात्माजीको उसका नाम कैसे ज्ञात हुआ ?

कुछ क्षण विचार करनेके पश्चात मेघजी बोला, “महात्माजी ये गायें मेरी नहीं हैं, अन्यथा मैं आपको अवश्य दूध दे देता, यदि मैं सेठकी आज्ञाके विरुद्ध दूध दूंगा तो वह अत्यंत क्रोधित होंगे और मुझे दण्डित करेंगे ।

यह सुनकर महात्माजी बोले, “बालक, तुम अंशमात्र भी भयभीत न हो और एक कार्य करो, तुम एक गायको मेरे पास ले आओ, मैं स्वयं ही दूध दुह लूंगा ।”

मेघजीका भय अभी पूर्णतया समाप्त नहीं हुआ था, इसी कारण उसने विचार किया कि एक मरकही गायको ले जाऊंगा तो वह भडक जाएगी और जिससे दूध दुहनेका प्रश्न पुनः नहीं आएगा; अतः वह ऐसी ही एक गायको महात्माके पास ले गया । महात्माजीके आत्मभावसे भरे मधुर स्पर्शसे गाय शांत रही और उन्होंने बिना किसी कठिनाईके दूध दुह लिया ।

तत्पश्चात उन्होंने कहा, “पुत्र, तुम प्रतिदिन इन गायोंको इसी स्थानपर चरानेके लिए ले आना ।”

इसके पश्चात बालक मेघजी महात्माजीको प्रणाम करके वहांसे प्रस्थानकर गया और मार्गमें लौटते हुए विचार करने लगा कि यदि महात्माजी प्रतिदिन गायका दूध पी जायेंगे तो सेठको शीघ्र ही सब कुछ ज्ञात हो जाएगा और वे अवश्य ही मुझे इस चाकरीसे निकाल देंगे; इसलिए भविष्यमें गायोंको इस स्थानपर पुनः चराने कदापि नहीं लाऊंगा; किन्तु उसके विपरीत, अगले दिवस चमत्कार हो गया, सेठने मेघजीसे कहा, “कल जिस स्थानपर गायोंको चराने ले गए थे, उसी स्थानपर ले जाना । आज सभी गायोंने अत्यधिक दूध दिया है, प्रतीत होता है, वहां चारा अच्छा मिलता है । जिस गायका महात्माजीने दूध दुहा था, उस गायकी ओर दिखाते हुए सेठने कहा, “आज इस गायने सबसे अधिक दूध दिया है ।”

इसके पश्चात मेघजीको पूर्णतः सब समझ आ गया कि जिनके स्पर्श व दर्शनमात्रसे ऐसा चमत्कार हो गया, उनकी सेवासे मेरा भी जीवन परिवर्तित हो सकता है और उसने दृढ निर्णयकर लिया कि जबतक गायें चरानेकी चाकरी करूंगा, तबतक उसी स्थानपर गायोंको चराने ले जाऊंगा । अब मेघजी प्रतिदिन गायोंको उसी स्थानपर चराने ले जाता और अत्यंत प्रेम एवं श्रद्धासे महात्माजीको दूध दुहकर देता । इसी क्रममें छः मास व्यतीत हो गए और मेघजीने अपनी सेवासे महात्माजीको प्रसन्न कर दिया । महात्माजीने प्रसन्न होकर मेघजीको आशीर्वादके रूपमें उपदेश देते हुए कहा, “सदैव ब्रह्मचर्यका पालन करना और तत्परतासे इस प्रकारसे सेवा और अखण्ड नामजप करना ।”

यह उपदेश देनेके उपरांत महात्माजी समाधिमें लीन हो गए । बालक मेघजी पूरी तत्परता एवं श्रद्धासे साधना करने लगा । कुछ समय पश्चात जब वह बालक यौवन अवस्थामें पहुंचा तो उसकी मां और मामाने उसके विरोध करनेके पश्चात भी उसका विवाह निश्चित कर दिया । अब मेघजीको महात्माजीके उपदेशका पालन किस प्रकार होगा ?, यह चिन्ता सताने लगी, वह विचार करने लगा कि महात्माजीने ब्रह्मचर्यका पालन करनेको कहा था; किन्तु यदि मैंने विवाहकर लिया तो मैं उनके दिए हुए वचनका पालन नहीं कर पाऊंगा और मेरी साधना भी अपूर्ण रह जाएगी; अतः गुरुवचनोंके उल्लंघनकी गम्भीर चिन्तासे वह अत्यधिक व्याकुल हो उठा और इसी चिन्तामें उसकी स्थिति मरणासन्न हो गई । तत्पश्चात उसने दृढ निश्चयकर, अपने भाईसे कहकर किसी भी प्रकारसे विवाह निरस्त करवा दिया ।

इसके पश्चात ही मेघजीकी स्थितिमें सुधार आया । कुछ समयके पश्चात मेघजीकी मांकी मृत्यु हो गई और वह सभी सांसारिक बन्धनोंसे मुक्त होकर सीधे महात्माजीके पास पहुंचा । वर्षों पश्चात  महात्माजी अपने शिष्यको अपने समक्ष देखकर अत्यधिक आनन्दित हो गए और मेघजीका संसारके प्रति तीव्र वैराग्य भावको देखकर गुरुजीने उन्हें पूर्ण ज्ञान दिया । इस प्रकार निष्काम सेवा, गुरुआज्ञापालन और पूर्ण समर्पणके प्रभावसे वही निर्धन चरवाहा आगे चलकर ‘संत मेघस्वामी’ बन गया ।

 



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