साधकके गुण (भाग-१३)


मुमुक्षुत्वका होना
साधनाका पथ बहुत ही कठिन पथ होता है, इसे आप कांटोंभरा पथ भी कह सकते हैं, इसलिए इस पथपर चलने हेतु दृढता यह गुण तो अति आवश्यक है; किन्तु मन दृढ तभी रहता है जब अपने लक्ष्यको पानेकी तीव्र उत्कंठा हो, ईश्वरप्राप्तिकी इसी तीव्र उत्कंठाको मुमुक्षुत्व कहते हैं ! जिनमें यह गुण नहीं होता है वह साधक इस पथमें आनेवाली बाधाओंसे भयभीत होकर इस पथको छोडकर भाग खडा होता है; किन्तु जिसमें अपने लक्ष्यको पानेकी तीव्र लगन होती है वह कठिनतम परिस्थितिमें भी भागता नहीं है, यह ध्यान रखें ।  इसलिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण गुण है, जो साधकको विपरीतसे विपरीत परिस्थितियोंमें अपने मार्गपर अटल रहनेकी प्रेरणा देता है ।
 साधकोंने प्रथम अपने मूल लक्ष्यका निर्धारण करना चाहिए एवं उसके पश्चात छोटे-छोटे ध्येय रखकर उसे पूर्ण करनेका प्रयास करना चाहिए जो मूल लक्ष्यको प्राप्त करने हेतु सहायक हो ! उदहारणके रूपमें यदि कोई साधक नामसंकीर्तनयोग अनुसार साधनाकर ईश्वरप्राप्ति करना चाहता है तो अखण्ड नामजप करना, यह साधकका मूल लक्ष्य हो गया और वह इसे कितने वर्षोंमें साध्य करना चाहता है इसका भी नियोजन करे, तत्पश्चात छोटे-छोटे ध्येय रखे, जैसे इस माह मैं प्रतिदिन दो घंटे बैठकर जप करूंगा ही और इसका पालन करने हेतु वह अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाए, उस ध्येयके पूर्ण होनेमें जो भी अडचनें है उसका हल ढूंढनेका प्रयास करे यदि वह स्वयंद्वारा हल न हो रहा हो तो अपने ज्येष्ठ साधक बन्धुकी सहायता ले, यदि उससे भी समाधान न हो तो किसी सन्तसे अपनी अडचनोंका निराकरण कराएं ।  जैसे ही यह ध्येय पूर्ण हो आगेका ध्येय निर्धारित करे इसप्रकार अपने लक्ष्यकी ओर मार्गक्रमण करनेका प्रयास करे ।  किन्तु यह तभी सम्भव होगा जब उसमें तीव्र मुमुक्षुत्व होगा अन्यथा वह सम्भव नहीं !


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