उपासनाका गुरुकुल कैसा होगा ? (भाग – ७)
गुरुकुलका अर्थ ही है, जहां गुरु शिष्य परम्पराका पोषण हो । गुरुकृपायोग साधनाद्वारा ही गुरु शिष्य परम्पराका पोषण सम्भव है अर्थात गुरु शिष्यको योग्य साधना बताकर उसे योग्य दिशा देते हैं और शिष्य गुरुकी कृपा पाने हेतु गुरुकी आज्ञाका पालनकर यथोचित पुरुषार्थ करता है ! उपासनाके गुरुकुलमें बाल्यकालसे ही यह साधना सिखाई जाएगी ।
आत्मज्ञानी गुरुकी विशेषता यही होती है कि वे सूक्ष्मसे शिष्यके सर्वांगीण विकास हेतु योग्य योगमार्ग बताते हैं ! इसी विशेषताके कारण हमारे यहां वैदिक गणितसे लेकर वास्तुकला शास्त्र एवं वेदोंसे लेकर पुराणोंतककेके व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक तत्त्वज्ञानका वृहद शास्त्र उपलब्ध है ! हमारे आत्मज्ञानी सन्त एक प्रकारसे अध्यात्मके शोध शास्त्री होते थे ! जैसे यदि गुरुने आयुर्वेदमें कुछ शोधकार्य किया है तो शिष्य उसी शोधकार्यको आगे बढाते थे ! इसी गुरु-शिष्य परम्पराके कारण हमारे यहां प्रत्येक क्षेत्रमें ज्ञानका स्थूल और सूक्ष्मका विस्तृत ज्ञान था, जो कालातरमें धर्मग्लानि एवं गुरु-शिष्य परम्पराका ह्रास होनेके कारण घटता चला गया ! पिछले एक सहस्र वर्षसे अनके मलेच्छ आक्रमणकारियोंने मात्र इस देशके ज्ञानको नष्ट करनेका ही कार्य किया है और जो थोडा बहुत बचा था, वह स्वतन्त्रता पश्चात निधर्मी शासकगणोंकी निष्क्रियतासे नष्ट हो गया ! आजके हिन्दुओंकी स्थिति तो इतनी विकट है कि उसे अपने धर्म और संस्कृतिके विषयमें ज्ञान न होनेके कारण वह निधर्मीसा जीवन व्यतीत करने लगा है !; इसलिए हिन्दू धर्मको पुनर्ज्जीवन मात्र और मात्र गुरु-शिष्य परम्पराके माध्यमसे पोषित साधक वृत्तिके जीव ही दे सकते हैं !; इसलिए उपासनाके गुरुकुलमें गुरुकृपा योगानुसार साधना करना इस गुरुकुलका अविभाज्य अंग होगा ।
हमारी वैदिक संस्कृतिमें ज्येष्ठ पुत्रके लिए पिता, अनुजके लिए ज्येष्ठ भाई, पत्नीके लिए पति गुरु हुआ करते थे अर्थात हमारे सम्बन्धोंमें ही गुरु-शिष्य सम्बन्ध अंतर्भूत थे ! किन्तु शिष्य गुरुके प्रति तभी शरणागत होता है, जब गुरुमें दिव्या गुणोंका भण्डार एवं पालकत्वके दैवी गुण दिखे । गुरुकुलसे जब सुसंसकृत पीढी निर्माण होगी तो यह परम्परा समाजमें पुनः अंतर्भूत हो जाएगी और इसे ही तो राम राज्य कहते हैं ! अर्थात उपासनाके गुरुकुल २०२५ में स्थापित होनेवाले रामराज्यको टिकाए रखनेका कार्य करेगी !
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