उपासनाका गुरुकुल कैसा होगा ? (भाग – १६)
वर्तमान समयमें एक वैदिक नारी और पुरुषमें जो दिव्य गुण होने चाहिए, उसका अत्यधिक लोप हुआ है ! यह सब धर्माचरण व साधना न करनेके कारण ही हुआ है ! इसलिए उपासनाके गुरुकुलमें इन सबके विषयमें भी विशिष्ट ज्ञान उन्हें दिया जाएगा |
जैसे आज अनेक पुरुष शिक्षित होते हुए भी वृत्तिहीन (बेरोजगार) होते हैं ! उन्हें यह समझमें नहीं आता है कि अपने परिवारका पालन-पोषण कैसे करें ? उपासनाके आध्यत्मिक उपचार केन्द्रमें ऐसे अनेक लोग आते हैं हमारे पास ! चार लोगोंके परिवारका पालन-पोषण एक शिक्षित पुरुष इसलिए नहीं कर सकता है; क्योंकि उसे अपनी समस्याका समाधान निकालना नहीं आता है | उसमें पुरुषोचित सहज गुणोंका अभाव होता है; इसलिए वह ऐसा नहीं कर पाता है, यह निश्चित ही हमारी शिक्षण प्रणालीका दोष है ! किन्तु साथ ही पुरुषोंमें आध्यात्मिक बलकी कमी होनेके कारण भी ऐसा हो रहा है; क्योंकि वैदिक पुरुष तो एक नूतन लोककी निर्मिति करनेका भी सामर्थ्य रखते थे ! उच्च शिक्षित न हो तो भी ५०-६० सदस्योंके कुटुम्बका प्रेमसे पालन-पोषण कर, खुले हाथसे दान-पुण्य करते हुए अपने ब्याहता बहन-बेटियोंको भी भर-भरकर उपहार देते थे ! यह मैं कोई बहुत प्राचीन कालकी बात नहीं कर रही हूं अपितु आजसे ६०-७० वर्ष पूर्व सभी भारतीय हिन्दू घरोंकी स्थिति ऐसी ही थी ! मात्र ७० वर्षोंमें यह दुर्दशा आज सर्वत्र हो गयी है !
यही स्थिति स्त्रियोंके साथ भी है | जो स्त्रियां ५० लोगोंके कुटुम्बको चक्कीमें अनाज पीसते हुए ६ से ७ बच्चोंको जन्म देकर उनमें दिव्य गुणोंको डालते हुए मुस्कुराते हुए निरंतर आनेवाले अतिथियोंका आतिथ्य प्रेमससे करती थी वहीं आज आधुनिक विज्ञान प्रदत्त सर्व सुख-साधन होते हुए भी अपने दो बच्चोंको संस्कारित नहीं कर पाती हैं और एक भोजन बनानेवाली, एक चौका-बर्तन करनेवाली नौकरानीके होते हुए भी अवसाद और रोगग्रस्त रहती हैं ! यह सब स्त्री सुलभ गुणोंमें कमी होनेके कारण ही है; इसलिए उपासनाके गुरुकुलमें इन बातोंको ध्यानमें रखते हुए विद्याथियोंको गृहस्थ जीवनके सामान्य तत्त्व ज्ञानको भी सीखाया जाएगा !
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