रात्रिमें ग्यारह बजेके पश्चात जागे नहीं, अपितु प्रकृतिके नियम अनुरूप सो जाएं !


साधको, रात्रिमें ग्यारह बजेके पश्चात यदि अत्यधिक आवश्यक न हो तो कृपया जागे नहीं अपितु प्रकृतिके नियम अनुरूप सो जाएं | एक साधक सदैव ही बिना कारण भी रात्रि जागरण कर प्रातः देर तक सोते हैं, मैं उनसे कबसे कह रही हूं कि कमसे कम १५ मिनिट प्रतिदिन नामजप कर, ब्यौरा भेजें; किन्तु उनसे यह नहीं होता है; क्योंकि रात्रिमें जागरण करके उन्होंने अपने आवरणको इतना बढा लिया है कि उन्हें शारीरिक नहीं वरन मानसिक कष्ट हो गया है ! उन्हें समय-समयपर अवसाद होते रहते हैं ! अर्थात यदि शारीरिक कष्ट न हुआ तो मानसिक अवश्य होगा और आध्यात्मिक सामर्थ्य तो निश्चित ही घटेगा !
ध्यान रहे मध्य रात्रिमें हमारे उदरके आन्तरिक अंग अपना कार्य करते हैं यदि हम जागे रहते हैं तो उनका कार्य या तो नहीं हो पाता है या सुस्त हो जाता है;  इसलिए मध्य रात्रि न जागा करें |


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