सन्तोंका क्रियामाण उनके प्रारब्धपर भारी पडता है !


    कल मेरी एक ज्योतिषीसे बातचीत हो रही थी, वे बहुत ही विनम्र एवं सात्त्विक थे ! उन्होंने कहा कि सन्तोंके विषयमें मेरी भविष्यवाणियां अधिकांशत: सही नहीं निकलती हैं ! मैंने कहा, “उचित कहा आपने |” सामान्य व्यक्तिका प्रारब्ध उनके क्रियामाणपर भारी पडता है वही सन्तोंका क्रियामाण उनके प्रारब्धपर भारी पडता है ! सामान्य व्यक्तिमें संकल्प करनेकी क्षमता नहीं होती है, वहीं संतोंमें संकल्प करनेकी क्षमता होती है !
      यहां मैं उस संकल्पकी बात कर रही हूं जिसमें अध्यात्मिक सामर्थ्य होता है ! आज सामान्य व्यक्तिका मन चौबीसों घंटे अनावश्यक विचार करनेमें लगा रहता है; इसलिए यदि वह कोई विचार करता है तो उस विचारके पूर्ण होने हेतु जो आध्यात्मिक क्षमता चाहिए वह उसमें नहीं होता है  ! सन्तोंके मनमें उनके आध्यात्मिक स्तर अनुरूप या तो बहुत ही कम विचार होते हैं या अति उच्च स्तरपर तो संत अधिकांशत: निर्विचार ही रहते हैं ऐसेमें उनके मनमें आनेवाले प्रत्येक विचार पूर्ण हो जाता है !
 और वैसे भी संतोंके मनमें जो विचार आते हैं वह परमार्थ हेतु ही होता है इसलिए उसे ईश्वर सहज ही पूर्ण करते हैं !


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