प्रेरक कथा – सबसे मूल्यवान वस्तु


राजा महेन्द्रनाथ प्रत्येक वर्ष अपने राज्यमें एक प्रतियोगिताका आयोजन करते थे, जिसमें सहस्रोंकी संख्यामें प्रतियोगी भाग लिया करते थे और विजेताको पुरस्कारसे सम्मानित किया जाता था ।
    एक दिन राजाने सोचा कि प्रजाकी सेवाको बढानेके लिए उन्हें एक राजपुरुषकी आवश्यकता है, जो बुद्धिमान हो और समाजके कार्यमें अपना योगदान दे सके ।  उन्होंने राजपुरुषकी नियुक्तिके लिए एक प्रतियोगिता आयोजित करनेका निर्णय लिया ।  दूर-दूरसे इस बार लाखोंकी संख्यामें प्रतियोगी आए हुए थे ।
राजाने इस प्रतियोगिताके लिए एक बडासा उद्यान बनवाया था, जिसमें राज-दरबारकी सभी मूल्यावान वस्तुएं थीं, प्रत्येक प्रकारकी सामग्री उपस्थित थी; परन्तु किसी भी वस्तुके सामने उसका मूल्य निश्चित नहीं किया गया था ।
      राजाने प्रतियोगिता आरम्भ करनेसे पहले एक घोषणा की, जिसके अनुसार जो भी व्यक्ति इस उद्यानसे सबसे मूल्यवान वस्तु लेकर राजाके समक्ष उपस्थित होगा उसे ही राजपुरुषके लिए स्वीकार किया जाएगा ।  प्रतियोगिता आरम्भ हुई ।
     सभी प्रतियोगी, उद्यानमें सबसे अमूल्य वस्तुकी शोधमें लग गए, कोई हीरे तथा मूल्यवान रत्न लाता, कोई सोना-चांदी तो कोई पुस्तकें तो कोई भगवानकी मूर्ति और जो बहुत निर्धन थे वे रोटी; क्योंकि उनके लिए वही सबसे अमूल्य वस्तु थी ।
सब अपनी क्षमताके अनुसार मूल्यको सबसे ऊपर आंकते हुए राजाके समक्ष उसे प्रस्तुत करनेमें लगे हुए थे ।  तभी एक नवयुवक राजाके समक्ष खाली हाथ उपस्थित हुआ ।
राजाने सबसे प्रश्न करनेके उपरान्त उस नवयुवकसे प्रश्न किया, “अरे ! युवक, क्या तुम्हें उस उद्यानमें कोई भी वस्तु अमूल्य दिखाई नहीं दी ? तुम खाली हाथ कैसे आए हो ?”
‘नवयुवक बोला, “राजन ! मैं खाली हाथ कहां आया हूं, मैं तो सबसे अमूल्य धन उस उद्यानसे लाया हूं ।” “तुम क्या लाए हो ?”, राजाने पूछा ।
“मैं सन्तोष लेकर आया हूं महाराज !” नवयुवकने उत्तर दिया ।
क्या ? “सन्तोष”, इनकेद्वारा लाए गए इन अमूल्य वस्तुओंसे भी मूल्यवान है ? राजाने पुनः प्रश्न किया ।
जी हां राजन ! इस उद्यानमें अनेक अमूल्य वस्तुएं हैं; परन्तु वे सभी व्यक्तिको क्षण भरके लिए सुखकी अनुभूति प्रदानकर सकती हैं ।  इन वस्तुओंको प्राप्तकर लेनेके पश्चात मनुष्य कुछ और अधिक पानेकी इच्छा मनमें उत्पन्नकर लेता है अर्थात इन सबको प्राप्त करनेके पश्चात व्यक्तिको प्रसन्नता तो होगी; परन्तु वह क्षणभरके लिए ही होगी ।  जिसके पास सन्तोषका धन होता है, सन्तोषके हीरे-मोती हैं, वही व्यक्ति जीवनमें सच्चे सुखकी अनुभूति और अपनी सभी भौतिक इच्छाओंपर नियन्त्रणकर सकेगा ।” नवयुवकने शान्त स्वरमें उत्तर देते हुए कहा ।
नवयुवकको लाखों लोगोंमें चुना गया और उसे राजपुरुषके लिए सम्मानित किया गया ।


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