संन्यासीसे बडा कर्मयोगी कोई नहीं होता !


कुछ लोग कहते हैं कि संन्यासी अकर्मण्य या आलसी होते हैं । वस्तुतः ईश्वरप्राप्ति या गुरुकृपा पानेको इच्छुक संन्यासीसे बडा कर्मयोगी कोई नहीं होता । परशुराम जन्मस्थलीके महन्त परम पूज्य बद्री बाबा इसके एक अच्छे उदाहरण हैं । वे पिछले ६५ वर्षोंसे अविरत उस स्थलकी सेवामें लगे हुए हैं । उनकी सेवा व निष्काम कर्मका ही प्रताप है कि जिस क्षेत्रका ही नाम जानापाव था अर्थात जाने हेतु दुर्गम स्थलको उन्होंने अपनी दृढ इच्छाशक्ति एवं कर्मसे उसे ‘जा पाओ’ अर्थात सुगम बना दिया । उनके कठोर परिश्रमके विषयमें भी बताउंगी; क्योंकि उन्होंने अपने आचरणसे एक आदर्श स्थापित किया है, वह समाजको ज्ञात होना ही चाहिए !
       कर्मयोगीके मुखपर निष्काम कर्मका तेज होता है, उस कर्मसे निर्माण हुए आनन्दको देखकर साधक और भक्तका मन आनन्दित हो जाता है । वैसे ही हैं बाबा, वे सहज होकर सब बताते हैं और मैं उनसे जो सीख रही हूं वह आपको बता रही हूं !
      गीतामें जो भगवान श्रीकृष्णने कर्मयोग बताया है उसका आचरण सभी सन्त करते हैं; इसलिए तो वे पूजनीय हो जाते हैं । कुछ पाठकोंने पूछा है कि उनकी लम्बी आयुका रहस्य क्या है ?, तो उनकी लम्बी आयुके अनेक कारणोंमें एक कारण उनकी कर्मठता है । कर्मठ व्यक्ति यदि धर्माचरणी हो, साधनारत हो और प्रारब्ध अनुकूल हो तो वह निश्चित ही दीर्घायु होता है । आपको बताया न कि अभी भी वे शौच हेतु वनमें जाते हैं और आज सामान्य व्यक्तिको यदि ५०० मीटर चलकर शाक लेने हेतु जाना हो तो उसे कष्ट होने लगता है ।
     कुछ पाठक, परशुराम जन्मस्थली कहां है ?, यह जानना चाहते हैं । आपको बता दें महर्षि जमदग्निकी तपोभूमि तथा भगवान परशुरामकी जन्मस्थली जानापाव, यह इन्दौर महानगरसे ४५ किलोमीटर दूर, महू उपखण्डके (तहसीलके) कुटी गांवमें स्थित है जो आगरा-मुम्बई (बम्बई) मार्ग अर्थात ए बी रोडपर स्थित है ।
इस तपोभूमिमें एक कुण्ड है जिससे चम्बल, गम्भीर, अंगरेड व सुमरिया नदियां व साढे तीन नदियां बिरम, चोरल, कारम व नेकेडेश्वरी ये साढे सात नदियां निकली हैं, यह इसी जानापाव पहाडीपर स्थित है । इनमें कुछ नदियां यमुना व कुछ नर्मदामें मिलती हैं । यह पहाडी भी विन्ध्याचलकी पर्वत शृंखला है ।
इस पहाडीसे चार किलोमीटर दूर हमारा आश्रम स्थित है । पहाडीपर भी बाबाके अथक प्रयाससे अब वहां रहने हेतु सर्व सुविधाएं हैं ।


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