तिलक धारण क्यों करें ? (भाग-२)


      मस्तिष्कके भ्रू-मध्य, ललाटमें जिस स्थानपर टीका या तिलक लगाया जाता है, यह भाग आज्ञाचक्र है ।
* एक और मतके अनुसार, शरीर शास्त्रके अनुसार ‘पीनियल’ ग्रन्थिका (तीसरे नेत्रका) स्थान होनेसे, जब पीनियल ग्रन्थिको उद्दीप्त किया जाता है तो मस्तिष्कमें एक प्रकारके प्रकाशकी अनुभूति होती है । रंग चिकित्सा शास्त्र भी इसका अनुमोदन करता है, इसे प्रयोगोंद्वारा प्रमाणित किया जा चुका है । हमारे ऋषिगण इस बातको भलीभांति जानते थे कि ‘पीनियल’ ग्रन्थिके उद्दीपनसे आज्ञाचक्रका उद्दीपन होगा । इसी कारणसे धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-उपासना व शुभकार्योंमें टीका लगानेका प्रचलनकर उसके उद्दीपनसे हमारे शरीरमें स्थूल-सूक्ष्म अवयव जाग्रत हो सकें, यह प्रयास किया जाता है ।
* जब हम मस्तिष्कका आवश्यकतासे अधिक उपयोग करते हैं, तब ज्ञान तन्तुओंके विचारक केन्द्र भृकुटिपर या ललाटके मध्य भागमें (ठीक उस स्थान जहां तिलक अथवा त्रिपुण्ड लगाते हैं) पीडा उत्पन्न हो जाती है । चन्दनका तिलक ज्ञान तन्तुओंको शीतलता प्रदान करता है । जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रात:काल स्नानके पश्चात चन्दनका तिलक लगाता है, उसे सिरकी वेदना नहीं होती है और अब त यह आधुनिक विज्ञान भी अब स्वीकार करने लगा है ।
* यदि हम नेत्र बन्द करके बैठ जाएं और कोई व्यक्ति हमारे भ्रू-मध्यके निकट ललाटकी ओर तर्जनी अंगुली ले जाए तो वहां हमें कुछ विचित्र अनुभव होगा । यही तृतीय नेत्रकी प्रतीति है । इस संवेदनाको हम अपनी अंगुलीको भृकुटि-मध्य लाकर भी अनुभव कर सकते हैं; इसलिए इस केन्द्रपर जब तिलक अथवा टीका लगाया जाता है, तो उससे आज्ञाचक्रको नियमित रुपसे उत्तेजना मिलती रहती है । इससे सजग रूपमें हम भले ही उससे जागरणके प्रति अनभिज्ञ रहें; परन्तु अनावरणका वह क्रम अविरत चलता रहता है ।


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