समष्टि पाप रोकनेसे ही प्राकृतिक आपादाओंका प्रमाण न्यून होगा !


प्राप्त समाचारके अनुसार इंदौर नगरमें और आसपासके क्षेत्रोंमें दो दिवस पूर्व हुई वर्षाने ३९ वर्षका कीर्तिमान तोड दिया है और २४ घण्टोंमें ११ इंच वर्षा हुई है; फलस्वरूप १५० से अधिक स्थानोंपर जल भरावकी स्थिति निर्मित हो गई । इंदौरके निकट हातोद और यशवंत सागरके पासके गावोंमें पानी भर गया है । सरोवर (तालाब) और खेत भी पानीसे भर गए हैं एवं इस भयंकर वर्षासे कृषकोंको बहुत हानि हुई है; क्योंकि इससे फसलपर बुरा प्रभाव पडा है ।
      पहले ही इंदौर, कोरोना महामारीके संक्रमणके कष्टसे उबरने हेतु जूझ रहा है और अब यह प्राकृतिक आपदा एक नूतन समस्या बनकर खडी हो गई है । इंदौर नगर दो ज्योतिर्लिंगोंके मध्य बसा है, एक है महाकालेश्वर एवं दूसरा है ओमकारेश्वर । शास्त्र अनुसार ऐसे क्षेत्रमें इस प्रकारकी आपदा नहीं आनी चाहिए; किन्तु ऐसा हो रहा है । किसी भी ज्योतिर्लिंगका चैतन्य ८० किलोमीटरकी परिधितक रहता है और इंदौर ऐसे दो ज्योतिर्लिंगोंकी परिधिमें है ।
         इस नगरमें एक आसुरी चलन आरम्भ है । यह कबसे है ?, यह तो मैं नहीं जानती हूं; किन्तु जब मैं सितम्बर २०१२ में प्रथम बार इस नगरमें प्रवचन हेतु आई थी तो मुझे प्रवचनके आयोजक गर्वसे ‘सर्राफा’ दिखाने ले गए, जहां रात्रि दस बजेके पश्चात प्रातः तीन बजेतक भिन्न प्रकारके पकवानोंके ‘स्टाल’ सोने-चांदीके ‘आपणी’के (दूकानके) सामने तब लगते हैं जब वे बन्द हो जाते हैं । इंदौरके लोगोंके अनुसार, यह यहांकी विशेषता है । दो तीर्थक्षेत्रोंसे लगे इस स्थानपर ऐसा अनर्थ होता है और यहांके किसी विद्वानने इस आसुरी चलनके विषयमें कभी लोगोंको जाग्रत नहीं किया, यह मेरे लिए आश्चर्यका विषय था ! आयोजकोंके साथ हमारे प्रवचनमें आए कुछ श्रोता भी साथ थे, उन्होंने मुझसे कहा, “आप भी खाइए ! मैंने कहा, मैं तो सूर्यास्तके पश्चात खाती ही नहीं हूं और निशाचरोंके कालमें (मध्य रात्रि) बाहर खाना, यह तो सम्भव ही नहीं है, मुझसे यह अधर्म नहीं होगा !” उन्होंने कहा, “एक बार खानेसे कुछ नहीं होता है ।” मैंने कहा, “धर्मभ्रष्ट होनेके लिए एक बार ही कोई भी कुकृत्यको करना पर्याप्त होता है और जब कोई व्यक्ति बार-बार धर्मभ्रष्ट होनेवाले ये कृत्य करता है तो उसकी बुद्धि, भ्रष्ट हो जाती है । मुझे समाजको धर्म व साधना सिखानी है, मैं अपनी बुद्धिको विशुद्ध ही रखना चाहती हूं; अतः मुझे क्षमा करें !” हमें इंदौर आए हुए ढाई वर्ष हो गए हैं; किन्तु अभीतक कभी वहां जाना नहीं हुआ है और न ही मैं बाहरसे आए साधकोंको वहां जाने देती हूं ।
      कुछ इंदौरवासी बडे गर्वसे मुझसे कहते हैं, “यह तो इस नगरकी विशेषता है, यहां तो कुछ खाद्य भण्डार ऐसे हैं, जो रातके ग्यारह बजे खुलते हैं और रात्रिके अपने सर्व खाद्य पदार्थोंका विक्रयकर, दो बजे बन्द हो जाते हैं और कुछ लोग वहां पोहा खाने जाते हैं !” यह इस देशका दुर्भाग्य है कि आज हम अपने तमोगुणी कृत्योंपर गर्व करने लगे हैं । मैं यह बताना नहीं चाहती थी; किन्तु सोचा जिस नगरमें मुझे आश्रय दिया है, उस स्थानके प्रति अपनी कृतज्ञताका भाव रख, आनेवाले चार वर्षोंमें अन्य महानगरों समान इस नगरकी भी दुर्दशा न हो जाए; इसलिए यह बता देती हूं । वैसे ही निधर्मी व्यवस्थामें, तमोगुणी वृत्ति लोगोंपर इतनी हावी है कि कुछ होगा तो नहीं; किन्तु मैंने सोचा इनकी वृत्तिके कारण मैं अपने धर्मकर्तव्यसे क्यों विमुख होऊं ?
हम तो परशुरामजीके तेजस्वी संरक्षणमें है; इसलिए हमें यह अधिक प्रभावित नहीं करेगा; किन्तु समय रहते यह अधर्म यदि इंदौर महानगरमें बन्द न हुआ तो इस समष्टि पापका भारी मूल्य इंदौरवालोंको चुकाना पडेगा, इस तथ्यको सभी लिखकर रख लें २०२५ में आप इसकी पुष्टि करें !
    जब हम वैयक्तिक स्तरपर प्रकृति विरुद्ध आचरण करते हैं तो हमारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगडता है, वैसे ही जब हम समष्टि स्तरपर अधर्म करते हैं तो समाजमें दैवीय प्रकोपके कारण कष्ट होता है; क्योंकि समष्टि पापसे वातावरण अशुद्ध हो जाता है । कटु शब्दोंमें सत्य कहें तो आसुरी शक्तियोंका प्रभाव बढ जाता है और वह अनेक प्रकारकी आपदाओंका कारक बनता है । शास्त्र है कि दस बजे रात्रिके पश्चात भोजन नहीं करना चाहिए; क्योंकि एक तो हमारा जो शारीरिक चक्र (बॉडी साइकिल) है वह उसके विरुद्ध होता है और दूसरी बात है कि रात्रि दस बजेके पश्चात आसुरी शक्तियां (निशाचर) विहार करने लगते हैं; इसलिए हिन्दू धर्ममें कोई भी शुभ कर्म इस कालमें करना वर्जित है; और भोजन करना इसे हमारे धर्ममें एक यज्ञकर्म माना गया है  ।
मुझे आश्चर्य इस बातका है कि यह नगर तो धर्मनिष्ठों, कर्मनिष्ठों, विद्वानों एवं धर्मज्ञोंका नगर रहा है, यहां होनेवाले इस अनाचारको रोकने हेतु अभीतक किसीने अपना स्वर मुखरित क्यों नहीं किया ?
 मुझे पता है इंदौरके कुछ चटोरे मेरे इस लेखको पढकर, ‘जाग्रत भव’ गुट छोड देंगे; क्योंकि आज जिह्वा सुख भी मुख्य सुखोंकी श्रेणीमें आ चुका है; किन्तु मैं समाजके लिए जो आवश्यक है, वही लिखती हूं; मेरा ध्यान पाठक संख्या या श्रोताओंकी संख्या बढानेपर नहीं रहता है ।
     वैसे चिन्ता न करें ! अभी यह अनाचार बन्द न हुआ तो २०२४ में हिन्दू राष्ट्र आनेपर इस बन्द कर दिया जाएगा; क्योंकि उस समय शासक एवं प्रशासक दोनों ही धर्मनिष्ठ होंगे; अतः वे समष्टि स्तरपर किसी भी प्रकारका अधर्म नहीं होने देंगे और रही बात रोजगारकी तो जिसके हाथमें भोजन बनानेका स्वाद होता है अर्थात अन्नपूर्णा मांकी कृपा होती है, उसके पास तो लोग दिनमें भी खाने आएंगे और प्रशासनद्वारा ऐसे लोगोंको स्थान देकर बसानेका भी प्रयास करना चाहिए । यह आज न हुआ तो हिन्दू राष्ट्रमें इन्हें निश्चित ही स्थान उपलब्ध कराया जाएगा, इतना वचन तो आपको दे ही सकती हूं !


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