जिस स्थानपर भी चार भीत्तिकाएं (दीवारें) खडी हो जाएं, उसे वास्तु कहते हैं और वहां जो शक्ति निर्मित हो जाती है, उसे वास्तु देवता कहते हैं । आजकल ‘वास्तु’, यह शब्द एक शोभाचार (फैशन) समान प्रचलित हो गया है और अनेक ढोंगी इस शास्त्रका आधार ले, समाजको दिशाहीनकर, उन्हें लूटते हैं; अतः सर्व-सामान्य व्यक्तियोंको इसके सम्बन्धमें शिक्षित करना और वास्तु शुद्धिके सरल उपाय बताना, हम सबका कर्तव्य है । वास्तुके अनुसार अधिकतम ६% ही कष्ट हो सकते हैं और शेष कष्ट अन्य कारणोंसे होते हैं; परन्तु वास्तुका शुद्ध एवं पवित्र रहना, हमारी साधना एवं सुखी जीवनके लिए आवश्यक है एवं पूरक भी है ।
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