साधको ! आश्रममें आकर पूछ-पूछकर सेवा करनेकी वृत्ति निर्माण करें !


कुछ समय पूर्व उपासनाके आश्रममें एक भण्डारेका आयोजन किया गया था । एक व्यक्तिको सूचना मिलनेपर वह भी आश्रममें सेवा हेतु आए थे । आश्रममें आनेपर जब भण्डारेमें उन्हें कुछ सेवा दी गई तो बिना किसीसे पूछे उन्होंने ‘कैटरिंग’वालेको आनेकी सूचना दे दी । जब उनसे पूछा गया कि आप सेवा क्यों नहीं कर रहे हैं ? तो उन्होंने कहा, “मैंने ‘केटरिंग’वालेको आने बोल दिया है । वे लोग आकर सब कर लेंगे । मैं इसके पैसे दे दूंगा ।”
किसी भी प्रतिष्ठानमें आकर अपने मनके अनुसार इस प्रकार बिना किसीसे पूछे निर्णय लेना पूर्णत: अनुचित है ।
उपासनामें हम धर्मप्रसारकी एवं राष्ट्र रक्षणसे सम्बन्धित सेवा करते हैं । यहां सामान्यतः भण्डारेका आयोजन नहीं किया जाता है; किन्तु आपातकालमें ऐसे आयोजन बार-बार करने पड सकते हैं; इसलिए एक तो सबको इसकी पूर्वसिद्धता हो सके एवं साथ ही सब एक साथ आकर ऐसा आयोजन कर सकें एवं संघभावका निर्माण हो, इस हेतु ऐसा करनेका नियोजन किया जा रहा है ।
जैसे लकडीपर महाप्रसाद बनाते समय भी एक व्यक्तिने कहा, “मैं गैसका चूल्हा लेकर आता हूं ।”
उन्हें बताया गया कि एक नहीं आश्रममें ये दो-दो हैं; किन्तु आपातकालमें सहज प्राप्त ईंधनसे अधिक प्रमाणमें भोजन बनानेकी सबकी पूर्वसिद्धता हो इसलिए ऐसा किया गया है ।”
ध्यान रहे प्रत्येक प्रतिष्ठानकी अपनी कार्यपद्धति होती है, तो वहां जाकर सब पूछ-पूछकर करके अपने साधकत्वका परिचय दें !



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