नारद पुराणमें उल्लेखित है कि जो स्त्री गर्भपात करवाती है, वह किसी प्रकारके सम्मान योग्य नहीं होती । इस पुराणके अनुसार महर्षियों और ज्ञानियोंने सभी प्रकारके पाप और कुकर्मोंके लिए प्रायश्चित बताया है; किन्तु जो व्यक्ति गर्भके शिशुको मरवाता है, उसके लिए दण्ड भोगनेके अतिरिक्त कोई मार्ग शेष नहीं बचता । ऐसे व्यक्तिका उद्धार नहीं होता ।
स्वामी रामसुखदासजी कहते हैं, “गर्भमें बालक निर्बल और असहाय अवस्थामें रहता है । वह अपने बचावका कोई उपाय भी नहीं कर सकता तथा अपनी हत्याका प्रतिकार भी नहीं कर सकता । अपनी हत्यासे बचनेके लिए वह पुकार भी नहीं सकता, रो भी नहीं सकता । उसका कोई अपराध या दोष भी नहीं होता, ऐसी अवस्थामें जन्म लेनेसे पहले ही उस निरपराध, निर्दोष, असहाय बच्चेकी हत्या कर देना पापकी, कृतघ्नताकी, दुष्टताकी, नृशंसताकी, क्रूरताकी, अमानुषताकी, अन्यायकी परिसीमा है ।
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