वाणी, मन एवं काया शुद्धि हेतु क्या करें ?


वाणीकी सिद्धि हेतु सत्यका अनुसरण करना चाहिए । अनेक सिद्धोंको वाक् सिद्धि होती है, यह उनके इस जन्म या पिछले जन्मके धर्मपालन या साधनाका परिणाम होता है ।
जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहारमें पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाए, सदैव सत्य ही बोलना । प्रत्येक शब्दका महत्त्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धियुक्त व्यक्ति में श्राप एवं
वरदान देनेकी क्षमता होती है । यह सत्य बोलनेकी शक्ति है । यदि स्वतन्त्रता पश्चात पाठ्यक्रमोंमें ऐसी बातें सिखाई गई होती तो आज समाजमें असत्य बोलनेवाले लोगोंका प्रमाण इतना अधिक नहीं होता ।
संतोंका लेखन पढने, सुनने या मनन चिन्तन करनेसे मनोदेह (मनकी) एवं कारणदेह (बुद्धिकी) शुद्धि होती है इसलिए पूर्व कालमें लोग प्रतिदिन लोग धर्मशास्त्रोंके पठन-पाठन हेतु अपनी दिनचर्यामें अवश्य ही समय रखते थे; इसलिए सभीका विवेक जाग्रत रहता था ।
भिन्न प्रकारके योगमार्गसे साधना करके भी स्थूल एवं सभी सूक्ष्म देहोंकी (मन, बुद्धि व अहंकी) पूर्ण शुद्धि सम्भव नहीं, यह मात्र गुरुकी कृपासे ही सम्भव होता है और उस कृपाको पाने हेतु भावपूर्वक, चूकविरहित गुरुसेवा करना चाहिए । उपर्युक्त तथ्योंकी पुष्टि हेतु शास्त्र कहता है –
सत्येन शुध्यति वाणी मनो ज्ञानेन शुध्यति ।
गुरुशुश्रूषया काया शुद्धिरेषा सनातनी ॥
अर्थ : वाणी सत्यसे, मन ज्ञानसे, काया गुरुकी सेवासे शुद्ध होती है, ये सनातन शुद्धि हैं ।



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