आध्यात्मिक दुःखके भिन्न कारण होते हैं (भाग – २)


फरवरी २०१३ में धर्मयात्राके मध्य मैं दुबई गई थी । उस समय मैं अपने धर्मयात्राकी समय सारिणी ‘फेसबुक’पर डलवा दिया करती थी ! एक दक्षिण भारतीय हिन्दू, जो दुबईमें रहते थे, वे मेरे लेखोंके कुछ वर्षोंसे पाठक थे, उन्होंने वहां होनेवाले सत्संगमें सम्मिलित होनेकी इच्छा दर्शायी और अपनी पत्नी सह उपस्थित भी हुए । सत्संग समाप्त होनेके पश्चात जब सब चले गए तो वे मुझसे कुछ बातें करने हेतु रुक गए । उन्होंने मुझसे कहा, “मुझे लगता है कि मुझे पितृदोष है !” मैंने कहा, “आपको कैसे पता कि आपको पितृदोष है ?” उन्होंने कहा, “मुझे आर्थिक कष्ट है और मुझे लगता है कि यह पितृदोषके कारण ही है ।” उन्होंने आगे बताया कि वे छ: वर्ष पहले दुबई आए थे और तभीसे वहीं चाकरी कर रहे थे  । उनका कहना था कि उनकी योग्यताके कारण उन्हें किसी अच्छे प्रतिष्ठानमें चाकरी तो मिल जाती है; किन्तु सातसे आठ माहमें वह चाकरी किसी न किसी कारण छूट जाती है और पुनः उन्हें अनेक माह चाकरी नहीं मिलती है ! जब उनकी स्थिति बहुत ही विकट (खराब) हो जाती है तो उन्हें पुनः कोई अच्छे प्रतिष्ठानमें चाकरी मिल जाती है और यह पिछले छः वर्षोंसे हो रहा है और दो वर्ष पूर्व उनका विवाह हो गया है; इसलिए अब ऐसी स्थिति आनेपर घरमें तनाव बहुत बढ जाता है ! मैंने उनसे कहा, “किन्तु यह तो कुलदेवताका प्रकोप है, अतृप्त पितर तो मात्र इस कष्टकी तीव्रताको बढा देते हैं !” उन्होंने झटसे कहा, “किन्तु कुलदेवता तो कभी कष्ट नहीं देते हैं !” मैंने कहा, “जो माता-पिता आपको जन्म देकर आपका लालन-पालन करते हैं, एक दिवस सक्षम होनेपर आप उन्हें भूल जाते हैं, तो क्या ऐसे माता-पिता आपसे प्रसन्न होंगे ? जिस कुलमें आपका जन्म होता है, उस कुलके कुलदेवताको आपसे कुछ अपेक्षाएं होती हैं, जिसे हम कुलाचार कहते हैं, उसका पालन करना हमारा धर्म होता है और यदि हम सात्त्विक हों और हममें साधना करनेकी क्षमता हो, तो कुलदेवता उसीप्रकार दण्डित करते हैं, जैसे एक कुशाग्र बुद्धिवाले विद्यार्थीके ठीकसे अभ्यास न करके आनेपर शिक्षक उन्हें दण्डित करते हैं । जो मैंने उन्हें बताया, वह विदेशमें रहनेवाले अन्य हिन्दुओंको भी ज्ञात हो और वे भी इन तथ्योंका पालन कर सकें, इस हेतु उन बिन्दुओंको संक्षेपमें बताती हूं –
१. विवाह या संतानके जन्मके उपरान्त यथाशीघ्र कुलदेवताके दर्शन हेतु सपरिवार अवश्य जाएं ।
२. आपके कुलदेवताके मन्दिर या स्थानमें नित्य स्वच्छता या पूजन इत्यादि होता है या नहीं ?, यह पूछकर लें और उसकी  यथाशक्ति व्यवस्था करें ।
३. जिन्हें गुरुमन्त्र न मिला हो, वे प्रतिदिन पूजा करते समय एक पुष्प कुलदेवताके नामसे चढाएं, यदि वह सम्भव न हो तो धूप और दीया तो अवश्य ही उनका ध्यानकर दिखाएं ।
४. प्रतिदिन १०८ बार अपने कुलदेवताका नाम जपें, नाम ज्ञात न हो तो ‘श्री कुलदेवतायै नमः’ जपें, अपने मूल स्थानके भूमि या घरको कभी न बेचें, वहां समय-समयपर जाया करें, इससे आपकेद्वारा सर्व कुलाचारका पालन होगा एवं बच्चे भी सर्व संस्कारोंसे अवगत होंगेंं । हम सबका कुलनाश हमारे कुलदेवताकी कृपाके कारण ही नहीं हुआ है । विदेशियोंके यहां कुल-गोत्र और प्रवरकी परम्परा कहां जीवित है ?
५. कुलदेवतासे अपने कुलके रक्षण हेतु प्रार्थना करें, कुछ चूक हो जाए तो मन ही मन क्षमा याचना करें ! जिस घरमें कुलदेवता प्रसन्न होते हैं, वहां धन-धान्य, पुत्र-पौत्र सबमें वृद्धि होती है, सब सुखी रहते हैं और कुलके लोग अध्यात्ममें भी प्रगति करते हैं । पृथ्वी तत्त्वसे सम्बन्धित होनेके कारण वे हमारी साधनासे त्वरित प्रसन्न होते हैं !
मैंने अपने आध्यात्मिक शोधमें पाया है कि विदेशोंमें या महानगरोंमें बसे हुए और अपने मूल स्थानको सदाके लिए त्याग चुके अनेक हिन्दुओंको ‘कुलदेवता प्रकोप’ है; अतः मैं सबसे कहती हूं कि अपने मूल स्थानसे सदा जुडे रहें ! कुलदेवताके रुष्ठ होनेसे घरमें कर्करोग जैसे महारोगका होना सामान्यसी बात है ! – तनुजा ठाकुर, संस्थापिका, वैदिक उपासना पीठ



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