निधर्मी लोकतन्त्रकी प्रशासनिक व्यवस्थामें आध्यात्मिक कष्टपर किए जाते हैं, हास्यास्पद एवं सतही उपाय !


धर्मप्रसारके मध्य सम्पूर्ण भारतमें चार चक्रिका (पहिया) वाहनद्वारा यात्रा करते समय अनेक बार मार्गपर मैंने ‘दुर्घटना आशंकित (एक्सीडेण्ट प्रोन) क्षेत्र, कृपया धीरे चलें’, ऐसा लिखा हुआ पाया है । जिज्ञासावश जब मैं स्थानीय वाहन चालकोंसे पूछती हूं कि क्या ऐसा लिखनेसे यहां दुर्घटना नहीं होती हैं ? तो वे कहते हैं, “नहीं, ऐसा लिखनेपर भी आए दिन इस मार्गपर एवं उस विशिष्ट स्थानके आसपास दुर्घटनाएं होती रहती हैं ।”
वस्तुत: ऐसे स्थान, सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियोंद्वारा (भूत-प्रेतादि) आवेशित होते हैं; इसलिए उस क्षेत्र या उस विशिष्ट स्थानपर दुर्घटनाएं होती हैं । हमारी निधर्मी प्रशासनिक व्यवस्था तो सूक्ष्म जगतपर विश्वास ही नहीं करती है, ऐसेमें बुद्धिसे एक बोधवाक्य लिखकर अपना पल्ला झाड लेती है । ऐसे स्थानोंपर किसी अध्यात्मविदको दिखाकर उस स्थानकी शुद्धि या कवच निर्माण करने हेतु आध्यात्मिक उपाय करवाना चाहिए ।
ऐसे स्थानपर यदि सतर्क करने हेतु कुछ बोधवाक्य लिख भी दिए जाएं तो सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियां अत्यधिक चतुर होती हैं, वे आधे किलोमीटर पूर्वसे ही चालकका मतिभ्रम करने लगती हैं, जिस कारण फलकपर लिखे बोधवाक्य देखनेपर भी दुर्घटना हो जाती है । हिन्दू राष्ट्रमें बुद्धि एवं बुद्धिसे परे दोनों ही स्तरोंपर ऐसे स्थानोंपर उपाय योजना की जाएंगी । – तनुजा ठाकुर (२२.११.२०१७)



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