आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न ! (भाग-२) 


हम सर्वप्रथम अन्नपूर्णा कक्षमें देवत्व निर्माण करने हेतु तथ्य देखेंगे । कल आपको बताया ही था कि अन्नपूर्णा कक्षमें (रसोईघरमें) बिना स्नान किए न जाएं, वैसे ही यह बताना चाहती हूं जैसा भाव हम अपने देवघरके प्रति रखते हैं या जो धर्माचरण हम अपने देवघरके साथ करते हैं वह सब अन्नपूर्णा कक्षके साथ करें ! जैसे आजकल महानगरोंमें अन्नपूर्णा कक्षमें बाहरसे आकर पादत्राण (चप्पल या जूते) पहनकर घुस जाते हैं । इस रज-तमयुक्त आचरणके कारण हमारे अन्नपूर्णा कक्षमें देवत्व न्यून हो जाता है या समाप्त ही हो जाता है । कुछ लोग घरके पादत्राण पहनकर वहां जाते हैं और कहते हैं कि यह तो हम मात्र घरमें ही पहनते हैं; इसलिए यह चलेगा; किन्तु ऐसा नहीं होना चाहिए । अन्नपूर्णा कक्षमें यदि आवश्यक हो तो मात्र मोजे या आजकल कपडेके पादत्राण मिलते हैं, उन्हें ही पहना करें ! ध्यान रहे आपका भाव जितना श्रेष्ठ होता है, देवत्व उतना ही शीघ्र एवं अधिक प्रमाणमें निर्माण होता है ।
        वैसे ही रजस्वला स्त्रियोंने भी अन्नपूर्णा कक्षमें नहीं जाना चाहिए । यह रूढी नहीं शास्त्र है । मैं भी एक स्त्री हूं और मैंने शोध किया है कि किस प्रकार मासिक धर्मके समय आजकी स्त्रियोंको अधिक प्रमाणमें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है ! एक तो पहले ही मासिक धर्मके कारण रज और तम, ये दोनों गुण उस कालमें स्त्रियोंमें थोडे अधिक हो जाते हैं, ऊपरसे अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट भी बढ जाता है तो ऐसी स्त्रियोंके हाथसे बना भोजन न ही हम भगवानजीको चढा सकते हैं और न ही उसे खा सकते हैं; इसलिए ऐसे कालमें भी स्त्रियोंको अन्नपूर्णा कक्षमें नहीं जाना चाहिए । आपमेंसे कुछ लोग कहेंगे कि आजकल तो एकल परिवार व्यवस्था है तो ऐसेमें हमें बहुत अडचन आएगी । धर्म हेतु कष्ट उठानेसे ही देवता प्रसन्न होते हैं; इसलिए देवकृपा चाहिए तो धर्मपालन करें ! उस कालमें पुरुष या घरमें पुत्र या पुत्री भोजन बनाएं ! इससे वे सभी प्रसाद बनाना सीख जाएंगे और उनमें एक गुण विकसित होगा जो उन्हें सदैव ही उपयोगी सिद्ध होगा ।


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