प्रश्न : जैसा कि मैं देख पा रहा हूं, मेरे पिता साधना नहीं करेंगे; क्योंकि उन्हें साधना करने हेतु अनेक बार कहनेपर भी वे साधना करनेका अंशमात्र भी प्रयास नहीं करते हैं, उनमें इस आयुमें भी संसारके प्रति अत्यधिक मोह है, इससे मेरे मनमें प्रतिक्रिया आती है । उनके साधना नहीं करनेके कारण हमारे व्यावहारिक जीवनमें भी अनेक विघ्न आते हैं । मेरा प्रश्न है कि क्या केवल मैं और माताजी साधना कर, पूर्वजोंको सद्गति दिलवा सकते हैं एवं क्या इससे मेरे पिता और छोटे भाईको कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियां नष्ट होंगी ? और यदि किसी कारणसे मां भी साधना गम्भीरतापूर्वक न कर पाए तो क्या और मात्र मैं ही करूं तो क्या मैं मेरी मृत्युके पश्चात मैं केवल अपना मार्ग प्रशस्त कर पाऊंगा या मृत माता-पिताके सूक्ष्म लिंगदेहको भी गति दे पाऊंगा ?; क्योंकि मैं नहीं चाहता कि उनमेंसे कोई भी मृत्यु पश्चात अतृप्त होकर भटके । - चैतन्य देव, देहली


उत्तर : योग्य साधना करनेपर एक पुत्र सम्पूर्ण कुलके पितरोंको सद्गति दिलानेका सामर्थ्य रखता है और इसका सर्वोत्तम उदाहरण हैं, भागीरथ मुनि, जिन्होंने कठोर तपश्चर्या कर अपने कुलके साथ सहस्र पूर्वजोंको भी गति दिलवाई थी; किन्तु उसके लिए प्रयास भी भागीरथी होने चाहिए; क्योंकि आज अधिकांश घरोंमें तीव्र स्तरका पितृदोष है ।
आपके साधना करनेपर आपके छोटे भाई एवं पिताजीको कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियां नष्ट होंगी, यह अनेक घटकोंपर निर्भर करता है । सर्वप्रथम यदि उन अनिष्ट शक्तियोंका लेन-देन आपके पिताजी और भाईसे है तो उन्हें ही इस हेतु साधना करनी होगी, जैसे हम किसीके लिए स्नान नहीं कर सकते हैं, वैसे ही हम किसी ऐसे व्यक्तिके लेन-देनमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, जो साधना नहीं करता हो । दूसरी बात है कि यदि कोई एक पितर या कुछ पितर उन्हें कष्ट दे रहे होंगे और आपकी साधनासे यदि उन्हें गति मिल जाए तो उनके कष्ट निश्चित ही कुछ कालके लिए समाप्त हो जाएंगे; किन्तु शीघ्र ही उनमें दूसरी अनिष्ट शक्तियां उनका स्थान ले लेती हैं, ऐसा हमारा आध्यात्मिक शोध कहता है । अपने देह और मनको शुद्ध रखने हेतु वैदिक सनातन धर्म अनुसार आचारधर्मका नियमित पालन करना, योग्य साधना करना एवं अपने दोष व अहंका निर्मूलन करना अति आवश्यक होता है । तीसरी बात है कि यदि आप साधना कर ६१% से अधिक आध्यात्मिक स्तरको प्राप्त कर लेते हैं तो आप उनपर आध्यात्मिक उपाय कर उनके कष्टकी तीव्रताको न्यून कर सकते हैं या समाप्त भी कर सकते हैं; किन्तु सामान्यतः उन्नत व्यक्ति अपने सगे-सम्बन्धियोंके कष्टको साक्षी-भावसे देखने लगते हैं; क्योंकि उन्हें ज्ञात होता है कि उनके कष्ट, प्रारब्धके कारण हैं या क्रियमाणसे योग्य साधना न करनेका परिणाम है ।
साधना कर आप देहमें रहते हुए अपनी आगेकी यात्राको सुगम कर सकते हैं, इस हेतु मृत्यु आवश्यक नहीं है और सामान्यतः सन्त पदको प्राप्त होनेवाले पुत्र अपने माता-पिताका तो निश्चित ही उद्धार कर सकते हैं ।
मेरे घरके कोई सदस्य मृत्यु उपरान्त भटके नहीं, यह भावना है, प्रत्येक जीव अपने कर्म अनुसार इस पृथ्वीपर एवं आगेके सूक्ष्म लोकोंमें प्रवास करता है; अतः सर्वप्रथम आप अपने आत्मोद्धारका प्रयास करें, जिससे आपमें भावना या अपने कुटुम्बके प्रति आसक्ति नष्ट होगी और आप सबकुछ ईश्वरेच्छा अनुसार तटस्थ होकर देख पाएंगे या कर पाएंगे ।



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