नामजपका प्रवास वैखरीसे मध्यमामें कैसे करें ?


मनमें नामजप करना, बोलकर नामजप करनेसे अधिक श्रेष्ठ है |
जब नामजप ऊंचे स्वरमें एवं प्रयत्नपूर्वक किया जाता है, उसे वैखरी वाणीका नामजप कहते हैं | वैखरीके नामजपसे प्राथमिक अवस्थाके साधकके लिए जपपर ध्यान एकाग्र करना सुलभ होता है | प्राणायामके भी लाभ प्राप्त होते हैं | ऐसे जपसे समष्टिको भी लाभ होता है अर्थात जो व्यक्ति इस जपको सुनता है उनके मनमें भी सात्त्विक भाव निर्माण होनेमें सहायता हो सकती है | साथ ही ध्वनि तरंगोंके कारण वातावरण सात्विक होनेमें सहायता मिल सकती है |

मात्र इस प्रकारके जपसे अन्य लोगोंके विचारोंमें या साधनामें बाधा हो सकती है । साथ ही, ऊंचे स्वरमें जप करनेपर मनका निर्विचार अवस्था पाना कठिन है । वैखरी वाणी और पश्यन्ति वाणीके मध्यमें जो नामजप होता है, उसे मध्यमा वाणीका जप कहते हैं । मध्यमा वाणीमें नामजप बिना प्रयत्नके, अपने आप होता है और यह मानसिक जप कहलाता है । वैखरीसे मध्यमामें जपका प्रवास हो, इस हेतु प्रथमतः जपको संख्यात्मक रूपसे बढाएं, तत्पश्चात नामजपमें गुणात्मक वृद्धि करें, इस हेतु नामजपको सांसके साथ जोडकर लयबद्ध रूपमें करनेका प्रयास करें और प्रार्थनाकी सहायता लें अर्थात नामजपके साथ भावपूर्ण प्रार्थना करें ।

अपनी दिनचर्यामें निम्नलिखित प्रार्थना जब भी ध्यान आए तब करनेका प्रयास करें |

* हे प्रभु, मुझे दुख सहनेकी शक्ति दें और प्रत्येक परिस्थितिमें मेरी साधना अविरत चलती रहे ऐसी आप कृपा करें

* मेरे नामजप अखंड हों, इस हेतु आप ही मुझे प्रयास करना सिखाएं

* मेरे चारों ओर आपके शस्त्रोंसे अभेद्य कवच निर्माण हो, जिससे अनिष्ट शक्तियां मेरे नामजपमें अडचन न डाल सके, ऐसी आप कृपा करें

* मेरे मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो, जिससे नामजप करते समय अनावश्यक विचार न आ सकें

* राष्ट्र एवं धर्मरक्षण हेतु मुझसे यथाशक्ति प्रयास हो, ऐसी मुझे सद्बुद्धि दें

* मेरे व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवनमें अनिष्ट शक्तियोंद्वारा जो भी अडचनें हैं, उसे दूर करने हेतु मुझसे क्षात्रवृत्तिसे प्रयास होने दें

* मेरी भक्ति और शरणागति बढे, ऐसे मुझसे प्रयत्न होने दें

* अपने दोष और अहंके विषयमें सतर्कतासे उन्हें दूर करने हेतु मैं प्रयास कर सकूं, इस हेतु आप मेरा योग्य मार्गदर्शन करें

* मैं प्रत्येक परिस्थितिमें साधनाका दृष्टिकोण रख आचरण करूं, इस हेतु मेरी सीखनेकी वृत्ति बढे, ऐसी कृपा करें !

* आपकी कृपादृष्टि इस तुच्छ भक्तपर सतत बनी रहे, ऐसी आपके श्रीचरणोंमें प्रार्थना है

वैखरीसे मध्यमा वाणीमें नामजपका प्रवास यदि मात्र नामजप करते हुए करेंगे तो अनेक वर्ष लग सकते हैं, परन्तु यदि नामजपको सत्संग और सत्सेवाका जोड दे दिया जाये, तो वैखरीसे मध्यमामें नामजप अत्यंत कम समयमें चला जाता है |

   सत्सेवा दो प्रकारकी होती है, एक संतोंके स्थूल देहकी सेवा और दूसरा संतोंको अतिप्रिय धर्मप्रसारकी सेवा करना | जब तक जीवनमें खरे गुरुका प्रवेश न हो, तब तक नामजपके साथ धर्मप्रसारकी सेवाकर शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं और ऐसा करनेसे नामजप शीघ्र ही अन्तर्मनमें चला जाता है अर्थात मध्यमा वाणीमें नामजप आरंभ हो जाता है । अपने मनसे धर्मप्रसार करनेकी अपेक्षा किसी संतके संरक्षणमें धर्मप्रसार करें, इससे आपके ऊपर गुरुकृपाका कवच रहेगा और आपका अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षण होगा । – पूज्या तनुजा ठाकुर



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