स्थापना दिवसके द्वितीय वर्षगांठके मध्य हुई अनुभूतियां :
यह चित्र 4 जनवरी को संध्या साढ़े पाँच बजे ली गयी है , देखें सभी साधक बिना ऊनी कपड़े के आनंदपूर्वक खड़े हैं पौष कृष्ण षष्टि एवं पौष कृष्ण सप्तमी को स्थापना दिवस समारोह नियोजित था | जब मैं 23 दिसम्बर को अपने गाँव (जिला गोड्डा, झारखंड ) पहुंची तो वहाँ कड़ाके की सर्दी पड रही थी | दिनांक 28 दिसम्बरकी रात्रि इतनी ठंड थी की मैं चाह कर भी संगणक (लैपटाप) पर सेवा नहीं कर पा रही थी क्योंकि मेरे हाथ सुन्न पर रहे थे | अगले दिन वहीं के एक स्थानीय योगिनि माता पीठ में गयी | वहाँ कुछ कर्मकांड की विधि की | उस दिन भी प्रचंड ठंड थी और कई दिनों से सूर्य नारायण दिन के बारह बजे थोड़ी देर के लिए दर्शन देते थे | उस दिन मैंने वहाँ प्रार्थना की और पूजा अर्चना कर माँ से प्रार्थना की कि इतनी ठंड में सेवा और समष्टि साधना कैसे हो पाएगी | तभी वहाँ उपस्थित देवताओंने कहा “चिंता न करें सब कुछ निर्विघ्न होगा” | और आश्चर्य तीस दिसम्बर से 4 जनवरी तक सूर्य देवता सुबह सात बजे निकल जाते थे और 2, 3, जनवरी को तो किसी भी साधक और उपस्थित कार्यकर्ता एवं भक्तों ने न तो मेरे निवास स्थान न ही मंदिर प्रांगण में संध्या सात बजे तक ऊनी कपड़े डाले, क्योंकि ठंड थी ही नहीं और ऐसा लग रहा था जैसे मार्च का महिना हो और मौसम अति सुरम्य हो गया था | 4 जनवरी को हल्की ठंड बढ़ गयी थी परंतु एग्यारह बजते बजते पुनः मौसम पहले दिन जैसा हो गया | 5 जनवरी को प्रचंड ठंड हो गयी और छह जनवरी से तो तापमान 5 डिग्री के नीचे आ गया !!! साथ ही साधारणतया गाँव में दो चार घंटे के लिए ही बिजली रहती है परंतु उस मध्य बिजली भी अच्छी रही और हमें जेनरेटर चलाना नहीं पड़ा | पुनः पाँच तारीख से बिजली ने अपना रंग दिखाना आरंभ कर दिया !
कार्यक्रम निर्विघ्न हो इस हेतु एक महीने से कुछ साधक नामजप और प्रार्थना कर रहे थे साथ ही दो संतों की उपस्थिती ने भी कार्यक्रम के निर्विघ्न होने में अपना योगदान दिया ! -परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर