साधकोंकी अनुभूतियां :


 

श्री यशपाल शर्मा की अनुभूति :

मैं अनेक वर्षोंसे दिल्ली के माँ झंडेवालीके मंदिरमें नवरात्रिके मध्य सेवा करता हूं; परंतु प्रत्येक नवरात्रि मेरा किसी न किसी व्यवस्थापक या सहयोगी सेवादारसे कोई बातपर वाद-विवाद हो जाता था।  इस बार नवरात्रिमें मेरी सेवा आनंदपूर्वक एवं निर्विघ्न हुई और मुझे ऐसा लागत है कि यह तनूजा मांके मार्गदर्शनमें साधना करनेका परिणाम है | मेरा मन सदैव नामजप करनेमें लगा रहता था |

अनुभूतिका विश्लेषण : नामजप करने से सेवाकी परिणामकारकतामें वृद्धि होती है साथ ही अंतरमुखता बढ्ने के कारण हम आंवश्यक बाह्य बातों में अपनी शक्ति का अपव्यय नहीं करते हैं |

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दिल्लीके श्री गिरीश सिंह की अनुभूति

दिनांक २३ अप्रैल २०१३ को पूज्य तनुजा मां सेवा केंद्रमें अपने कमरेमें लेखन कर रहीं थीं | मैं स्नानगृहमें वस्त्र  धो रहा था तो मुझे ऐसा लगा कि  पूज्य मांको प्यास लगी है और वो पानी मांग रही है, मैंने स्नानगृहके अंदरसे एक साधकसे बोला भी परंतु संभवतः किसीने मेरी आवाज सुना नहीं ।  और जब मैं वस्त्र  सुखानेके लिए बाहर आया तो मैंने देखा कि पूज्य दीदी स्वयं रसोईघरमें पीने हेतु जल ले रही थी। उनको प्यास लग रही थी उसकी प्रचीति उन्होंने मुझे सूक्ष्म से पहले ही दे दी थी  ।

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दिल्लीकी श्रीमती जूही चौहान की अनुभूति :

दिल्ली सेवाकेन्द्र में पूज्य तनुजा मां का आगमन २४ अप्रैल २०१३ को हुआ | उसके पश्चात दो दिवस तक मैंने पाया कि पूज्य मांके कमरेका द्वार जैसे ही खोलती थी तो गरम हवा का झोंखा वहांसे निकलता था और उनका कमरा अत्यधिक गर्म था जबकि उनके कमरेमें कूलर चल रह था और आश्रम के शेष कमरेमें मात्र पंखे चल रहे थे तब भी वे अपेक्षाकृत शीतल थे | मांके आनेसे पहले वह कमरा ठंडा रहता था और इसकी अनुभूति सभी साधकोंने ली !

अनुभूतिका विश्लेषण : जैसे जैसे सूक्ष्म महायुद्ध ( 2000 -2010 ) की तीव्रता बढती चली गयी मेरी प्राणशक्ति घटती चली गयी और मुझे अत्यधिक गर्मी लगने लगी और गर्मी असह्य होने लगा है और वैसे ही प्राणशक्ति कम हो जाने के कारण अत्यधिक ठंड भी सहन नहीं होता | सूक्ष्म युद्धके समय शक्ति निर्माण होना स्वाभाविक है और उसका स्थूल परिणाम भी स्पष्ट रूपमें दिखना यह भी स्वाभाविक है ! इस प्रकारकी अनुभूति हमारे श्रीगुरु जहां ग्रंथ लेखन संबन्धित साधकको उनकी सेवाके संदर्भमें मार्गदर्शन करते हैं, उन साधकोंको भी इस प्रकारकी अनुभूति हुई है और वह मराठी सनातन प्रभातमें छपी भी है अब इसे ईश्वरीय लीला कहें कि जूही को यह अनुभूति होने के अगले दिवस ही मराठी सनातन प्रभात में इस प्रकार की अनुभूति छप कर आई |- तनुजा ठाकुर



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