अनुभूति क्या होती है ?
जब कोई साधक साधना पथपर अग्रसर होने लगता है, तो ईश्वर उसे अनुभूति देते हैं और अनुभूतिके सहारे साधक, साधना पथपर और अधिक उत्साहसे आगे बढने लगता है |
अनुभूति मन एवं बुद्धिसे परे, हमारी सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियोंके माध्यमसे ह
मारी जीवात्माको होती है, उसका मन एवं बुद्धिके स्तरपर विश्लेषण करना कठिन है | अनुभूतियोंसे हमारी श्रद्धा बढती है |
अनुभूतियां लौकिक और अलौकिक जगत दोनोंके संदर्भमें हो सकती है जैसे किसीको यदि कोई व्यावहारिक लाभ मिलनेसे उसकी श्रद्धा बढ़ेगी तो उसे ईश्वर वैसे ही अनुभूति देते है, किसीको यदि आध्यात्मिक अनुभूति होनेसे उसकी श्रद्धा बढती है तो उसे वैसी अनुभूतियां होती हैं | अनुभूति ईश्वरद्वारा एक प्रकारसे साधककी साधनाके मीलके पत्थर (milestones) हैं, जो साधनाको गति प्रदान कर, हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं | साधकोंकी अनुभूति सुननेसे या पढ़नेसे, हमारी भी श्रद्धा बढती है और यदि हमें ऐसी अनुभूति हो, तो समझमें आता है कि फलां घटना वास्तविक रूपमें अनुभूति थी | परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर
गोड्डा, झारखंडके कुछ साधकोंकी अनुभूतियां
दिनांक ५.९.२०१० के दिन जब हम काली मंदिरमें थे तो मेरे सिरमें वेदना हो रही थी तत्पश्चात् तनुजा दीदी आईं तो मैं खडी हो गयी और मेरे सिरकी वेदना तुरंत समाप्त हो गई । – संध्या कुमारी, कक्षा – छ:
दिनांक ४.४.२०१० के दिन जब हम विष्णुधाम जहां तनुजा दीदी रहती हैं वहां जा रहे थे तो मेरे सिरमें वेदना होने लगी | वहां पहुंचनेपर दीदीने मुझे जो टॉफी खानेके लिए दिया, उसे प्रसादके रूपमें ग्रहण किया तो मेरा सिरकी वेदना समाप्त हो गई त्तपश्चात् जब मैं ये अनुभूति तनुजा दीदीको बताने जा रही थी तो पुनः मेरे सिरमें वेदना होने लगी, मैंने पुनः मैंने भगवानजीसे प्रार्थना की और मेरी वेदना समाप्त हो गई तब मैं अपना ये अनुभूति तनुजा दीदीको बता पाई । – सपना कुमारी, कक्षा – स्नातक प्रथम वर्ष
दिनांक ४.८.२०१० के दिन हम ट्यूशनमें गृह कार्यमें दिए गए पाठको स्मरण करके नहीं गयी थे तो शिक्षक बोले कि पाठ याद करो तो मुझसे याद हो ही नहीं रहा था तो मैंने सरस्वती मांसे प्रार्थना की तो मुझे पाठ तुरंत स्मरण हो गया । – मनीषा कुमारी, कक्षा – पांच
दिनांक २७.७.२०१० के दिन जब हमने जैसे ही तनुजा दीदीके चरण स्पर्श किए तो मेरा पूरे शरीरमें शीतलताका भान होने लगा । – मनीषा कुमारी, कक्षा – पांच
दिनांक २३.४.२०१० के दिन जब मेरी मां पटना डॉक्टरके पास इलाज करवाने गयी थी तो मेरा घरके किसी भी कार्यमें मन ही नहीं लग रहा था और मन अशांत सा लग रहा था; परंतु जब २४.४.२०१० को तनुजा दीदीको देखा तो मन शांत लगने लगा और उनके स्कूटीका आवाज सुनकर भी संतुष्टि लगने लगा, तो मेरे अंदर धैर्य और साहस भी आ गया और मैंने मांको दूरभाष करके बोली, “सब ठीक हो जाएगा, आप चिंतित न हों” । – भारती कुमारी, गोड्डा (झारखंड)
दिनांक १.७.२०१० के दिन जब काल मंदिरमें तनुजा दीदी श्रीमदभगवद्गीता पढा रही थी तो ऐसा लग रहा था कि वहां दीदी नहीं बल्कि गणेशजी वहां बैठकर हमें श्रीमद भगवद्गीता पढा रहे हैं – मनीषा कुमारी, कक्षा – पांच
दिनांक १३.७.२०१० के दिन जब हम गुरुपूर्णिमाकी तैयारी हेतु गोड्डामें स्थित अग्रसेनभवनकी वास्तुशुद्धि कर रहे थे और मैंने कभी अग्रसेनभवन देखा नहीं था; परंतु दो दिन पूर्व मेरे मनमें जो अग्रसेनभवनका नक्शा आया, वह ठीक उसी प्रकारका था । – कैलाश कुमार मण्डल, कक्षा – नौवीं
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