आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न ! (भाग-८)


हमने आपको बताया ही था कि आजकल अन्नपूर्णा कक्षमें प्रसाद (आपकी भाषामें भोजन) बनानेवाले  पात्र अस्वच्छ एवं अपवित्र होते हैं । वैसे ही अन्नपूर्णाकक्षमें जो कपाटिकाएं (अलमीरा) होती हैं, वे भी अस्वच्छ एवं अव्यवस्थित होती हैं ।  अनेक बार वे अत्यन्त पुरानी होती हैं या पिचकी, टूटी-फूटी होती हैं । यदि हाथ लगा लें तो पाएंगे कि उनमें तेलचिकट भी रहता है । आजकल ‘मॉल’ आरम्भ हुए हैं, वहांसे स्त्रियां अनेक बार अनावश्यक वस्तुएं भी ले आती हैं और उसका उपयोग न होनेपर उन्हें ऐसे ही रख देती हैं, उनमें कीडे लग जाते हैं । अन्न भण्डारणके भी पात्रमें जो अन्न होता है उसमें भी कीडे लग जाते हैं तो उसे भी वे उठाकर कूडेदानमें डाल देती हैं ।  ‘अन्न ब्रह्म है’, यह सामान्यसा बोध आज गृहस्थोंको नहीं है, यदि वे किसी सामग्रीका उपयोग नहीं कर रहे हैं तो उसे किसी और को दे दें, यह भी उनसे नहीं होता है । प्रशीतककी (फ्रिजकी) भी स्थिति कुछ ऐसी ही होती है । उसमें भी अनेक वस्तु ठूंसकर रख देते हैं । अर्थात अन्नपूर्णा कक्षमें एक प्रकारसे रावणराज्य होता है । तब मुझसे कहते हैं, “मेरे यहां तो समृद्धि (बरकत) ही नहीं है या मेरे पतिको आर्थिक कष्ट है या व्यापारमें हानि होती है । अब जब अन्नपूर्णा स्थलकी ही ऐसी स्थिति होगी तो लक्ष्मी प्रवेश कैसे करेगी ? आप ही सोचें ! सप्ताहमें एक दिवस अन्नपूर्णा कक्षकी स्वच्छताको देना चाहिए, यह भी अब स्त्रियोंको सिखाना पडता है । यह मैं कोई काल्पनिक बात नहीं कह रही हूं । आप यह लेख पढकर अपने अन्नपूर्णा कक्षमें जाएं और मेरे बताए तथ्योंकी त्वरित प्रतीति लें !
और आपके अन्नपूर्णा कक्षके स्पन्दन कैसे हैं ? इसकी भी प्रतीति लें ! एक आसन लेकर बैठ जाएं और १५ मिनिट नामजप करें ! यदि आपका मन विचलित हुआ तो समझ लें की वहांके स्पन्दन नकारात्मक हैं । अभी तो महानगरोंमें शाक (तरकारी) खानेमें संकट लग रहा है आगे तो अन्न मिलनेसे भी कष्ट होगा; इसलिए समय रहते देवत्व जाग्रत करें !
      मैंने जो तथ्य बताएं हैं, उन्हें करते जाएं, आपके घरके स्पन्दन ही नहीं आपके परिवारवालोंकी भी वृत्तिमें परिवर्तन दिखाई देने लगेगा !


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