आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न (भाग-१९)


स्थान देवता एवं ग्राम देवताके प्रसन्न रहनेसे सम्बन्धित और तथ्य बतानेसे पूर्व एक जिज्ञासुने जो पूछा है वह बताती हूं । उन्होंने पूछा है कि आप जयपुरके स्थान देवता और मैं जहां रहता हूं वहांके ग्राम देवताका नाम बताएं ?
 अब हम आपको शास्त्र बता सकते हैं, प्रत्येक नगर या ग्रामके देवताका नाम बताना सम्भव नहीं है । आज आपको जयपुरके स्थान देवताका नाम बताएंगे तो भारतके अन्य राज्योंके लोग भी ऐसा पूछने लगेंगे तो मैं सब सेवा छोडकर यही कर रही होऊंगी, तो इतना भी स्वार्थी न बनें कि समष्टि कार्य ही प्रभावित हो जाए ! यह आपको वहींके स्थानीय वृद्धसे या स्थानीय पुरोहितसे या वहांके स्थानीय जानकारसे पूछना होगा । यदि तब भी पता न चले तो आपके क्षेत्रका जो भी सिद्ध मन्दिर है, उसे ही आप स्थान देवता या ग्राम देवता मानकर धर्मपालन कर सकते हैं ।
     आपमेंसे कुछ लोगोंके मनमें प्रश्न उठता होगा कि क्या विदेशमें भी स्थान देवता या ग्राम देवता होते हैं, तो जी हां वहां भी होते हैं । आपको इस सम्बन्धमें अपनी एक अनुभूति बताती हूं । यह मैं एक बार साझा कर चुकी हूं; किन्तु आजके परिप्रेक्ष्यमें यह अधिक प्रासंगिक है ।
  २०१५ में मैं ऑस्ट्रियाके विएना नगरमें धर्मयात्राके मध्य गई थी । इससे पूर्व मैं दो बार जा चुकी थी । २०१५ में सतत एक सप्ताह प्रथम  विएनाके स्थानीय हिन्दू मन्दिरमें उसके पश्चात कुछ हिन्दुओंके घरोंमें प्रवचन हुआ । मैं इसके पश्चात जर्मनी चली गई । लौटते मैं वहां पुनः कुछ दिवस रुकी थी; क्योंकि मुझे मासिक पत्रिका जो उस समय ‘ऑनलाइन’ हुआ करती थी, उसका संकलन व लेखन करना था; अतः मैं वहां रहकर भी कहीं जा नहीं पाई थी । जो लोग मुझसे जुडे थे उनकी बहुत इच्छा थी कि मैं उनके साथ कहीं भ्रमण हेतु जाऊं । अस्वस्थता एवं सेवाके कारण मैं विदेश जानेपर भी कहीं जाती नहीं हूं; किन्तु उनका मन रखनेके लिए हम वहींकी डेन्युब नदीमें ‘जहाज’द्वारा भ्रमण हेतु गए थे । वह दृश्य बहुत ही सुन्दर था; क्योंकि वह पूरा मार्ग बहुत ही सुन्दर निसर्गसे होकर जाता था । मैं जहाजसे उतरकर अपनी वृत्ति अनुरूप डेन्युब नदीकी देवीको प्रणाम करने लगी कि तभी एक सुन्दर देवी नदीसे (सूक्ष्मसे) प्रकट हुई । मैंने सोचा कि यह डेन्युब देवी होगी । मैंने उन्हें प्रणाम किया और उन्हें अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए, उनसे सूक्ष्मसे संवाद करते हुए कहा कि आपकी नदीकी नैसर्गिक छटा बहुत ही मोहक है; किन्तु उस देवीने जो कहा, उससे मुझे भी सीखने हेतु मिला । उन्होंने कहा, मैं डेन्युब देवी नहीं हूं, मैं तो यहांकी स्थान देवी हूं, सैकडों वर्षसे आसुरी शक्तियोंने मुझे बन्धनमें बांध कर रखा था; किन्तु यहां वैदिक उपासना पीठके सतत इतने प्रवचन हुए कि उसके चैतन्यसे मैं बन्धनमुक्त हो गई । तुम्हारे प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु प्रकट हुई हूं ।
      उपासनाके सत्संगमें हम क्या बताते हैं ?, यह तो आप सुनते ही हैं, यह सब विशुद्ध वैदिक ज्ञान, हमने हमारे श्रीगुरुसे सीखा है; अतः उसके चैतन्यसे वह देवी मुक्त हो गईं, यह सुनकर मुझे अपने गुरुदेवके प्रति बहुत ही कृतज्ञता व्यक्त हुई और यह ज्ञात हुआ कि सभी स्थानोंपर स्थान देवता एवं ग्राम देवता होते ही हैं ।
एक विशेष बात बता दूं कि उस वर्ष हमने अकस्मात गुरुपूर्णिमाका स्थल इटलीसे वियना कर दिया था और स्थानीय लोगोंका कहना था कि बुधवार अवकाशका दिन नहीं है; इसलिए लोग नहीं आएंगे; किन्तु आश्चर्यकी बात यह है लगभग १०० लोग आए थे जो उस मन्दिरके सभी क्रियाशील कार्यकर्ताओंके लिए भी आश्चर्यका विषय था । तो इससे भी यह सिद्ध होता है कि यह स्थान देवताके प्रसन्न होनेके कारण ही हुआ था ।


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