आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न (भाग-१५)


साधको, अपने घरमें देवत्व निर्माण करने हेतु उसे आश्रम समान चैतन्यमय बनानेका प्रयास करें, इससे आपातकालमें  भी आपका वास्तुपर देवकृपाका कवच रहेगा, वह अस्तित्वमें भी रहेगा और आपका रक्षण भी करेगा, साथ ही साधना हेतु वह पोषक भी होगा । आपको तो ज्ञात ही होगा कि पिछले एक माहमें पृथ्वी १५० से अधिक बार हिल चुकी है अर्थात भूकम्पके झटके अनुभव किए गए हैं | इसलिए अपने घरको अपने गुरुका आश्रम या आपके आराध्यका मंदिर है, यह समझकर उसमें रहें ! वे हमें सतत देख रहे हैं, ऐसा भाव रखें । हम जिस प्रकार किसी आश्रममें रहते हैं, वैसा वर्तन करें ! अर्थात गुरुको हमसे जिस प्रकारका वर्तन अपेक्षित है, वैसा करनेका प्रयास करें ।  यह संस्कार मनमें अंकित हो, इस हेतु अपने गुरुको कृतज्ञता व्यक्त करें कि उन्होंने हमें अपने आश्रमरूपी घरमें रहनेका सुअवसर दिया है । बोलते समय भी यह हमारे श्रीगुरुका ही आश्रम है, मैं मात्र इसका चाकर हूं, यह भाव रखें ! जैसे आश्रममें प्रवेश करनेसे पूर्व हम अपने पादत्राण (चप्पल और जूते) उतारकर अपने पांव धोते हैं, वैसे ही घरमें प्रवेश करनेसे पूर्व यह कृत्य करें ! यदि ऐसा आपके लिए सम्भव न हो तो घरके प्रवेशद्वारपर एक लोटेमें जल रखें और घरमें घुसनेसे पूर्व उस जलको छिडककर निम्नलिखित श्लोक बोलें !
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तरः शुचिः॥
उसके पश्चात अपने प्रसाधन गृहमें (स्नानगृहमें) जाकर सर्वप्रथम अपने पांवको अच्छेसे धोलें एवं थोडेसे जलको स्वयंको ऊपर छिडक लें और यह प्रार्थना करें कि जो भी अनिष्ट आवरण मुझपर बाहरसे आया हो वह नष्ट हो और जो भी अनिष्ट शक्तियां हमारे साथ आईं हों वे इस वास्तुसे चली जाएं एवं मेरी अन्तर और बाह्य शुद्धि हो । अब तक हम धर्मपालन अन्तर्गत यह किया करते थे; किन्तु जब हम यह भूलने लगे तो ईश्वरीय नियोजन अनुसार अब कोरोना महामारी ऐसा करने हेतु बाध्य कर रही है ।


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