आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न (भाग-१६)


पिछले दो वर्षोंसे जिस प्रकार कोरोना महामारी एवं अन्य प्राकृतिक आपदाएं अपना विकराल रूप दिखाने लगी हैं, ऐसी स्थितिमें देवता ही हमारा रक्षण कर सकते हैं । हमारा रक्षण हो, इस हेतु हमारे स्थान देवता, ग्राम देवता, वास्तु देवता, कुल देवता, गुरु सभीकी कृपा अति आवश्यक है । तो आपको एक-एककर इन सबको प्रसन्न करनेकी पद्धति बताउंगी । हिन्दू धर्ममें जब भी कोई पूजा, अनुष्ठान, यज्ञ इत्यादि होता है तब सभी देवताओंको प्रसन्न करने हेतु आहुति दी जाती है या उनका पंचोपचार पूजन किया जाता है । आज सारे बडे नगरोंमें कोरोनाका प्रकोप इतना अधिक क्यों       है ? क्या आपने कभी इसपर विचार किया है ? इन सभी स्थानोंके अधिष्ठाता देवता या देवी वहांके लोगोंसे रुष्ट हैं । आज भी आप ग्रामीण भागमें जाएंगे तो वहां एक वार्षिक उत्सव, स्थान देवता या ग्राम देवताके नामसे होता ही है । यदि इन महानगरोंके लोग अपने स्थान देवताको प्रसन्न करने हेतु योग्य साधना करें तो अनेक नैसर्गिक एवं मानवीय प्रकोपोंसे सहज बचा जा सकता है; किन्तु निधर्मी व्यवस्थामें यह कैसे समझाया जा सकता है ? इसलिए आपको मैंने कहा था   कि अपने मूल ग्राममें रहने योग्य स्थान बनाकर रखें;   क्योंकि आनेवाले कालमें महानगरोंमें रहना और भी   कष्टदायक होगा । वैसे दो तीन वर्षोंमें इतने कष्ट होंगे   कि महानगरोंके लोग भी सुधर जाएंगे ! कलियुगी जीवको  मात्र कष्ट ही ईश्वर उन्मुख कर सकता है । एक बार मुझे    बंगालमें धर्मप्रसारके मध्य यात्रा करते समय एक अधेढ आयुके साम्यवादी मिले थे । मैं जब यात्रा करती हूं तो  अपनी जपमाला और हमारे बाबागुरुके भजन और हमारे श्रीगुरुके ग्रन्थ साथ रखती हूं । जब जैसे समय होता  है, मैं या तो नामजप करती हूं या बाबाके भजनसे मेरा मन त्वरित निर्विचार हो जाता है तो उसे सुनते हुए ध्यान लगाती हूं या अपने श्रीगुरुके ग्रन्थ पढती हूं; क्योंकि शेष समय तो मुझे मेरी व्यष्टि करनेका समय नहीं मिलता है । तो एक दिवस ऐसे ही यात्राके मध्य जब मैं माला लेकर जप कर रही थी तो मेरे साथ बैठे वे साम्यवादी व्यक्ति, मुझे बुद्धिभ्रष्ट करने हेतु, साधना न करनेका सुझाव देते रहे । मैं नामजप करते हुए उन्हें बोलनेके लिए उत्साहित करती रही । जब उनका धर्मके प्रति विषवमन बन्द हो गया तो मैंने उन्हें कहा, “आपको बहुत ही ज्ञान है और आप एक सज्जन व्यक्ति भी लगते हैं । आप तो बंगाली हैं, मैंने सुना है कि यहां सभी लोगोंकी मां कालीपर आस्था है; किन्तु आप साम्यवादी हैं तो निश्चित ही आपकी उनके प्रति आस्था नहीं होगी; किन्तु दादा सच-सच बताएं ! क्या आप मां कालीके पास कभी भी उसने कुछ मांगने नहीं  गए ? वह व्यक्ति सचमें सज्जन था, जिसे साम्यवादियोंने अपनी कुत्सित विचारधारासे दिशाभ्रमित कर दिया था । उन्होंने मेरी ओर देखा और कहा, “एक बार गया था मैं मां कालीके द्वारपर, जब मेरी बेटी बहुत अस्वस्थ थी और सभी चिकित्सकोंने कह दिया था कि अब सब कुछ ईश्वरके हाथोंमें  हैं ।” मैंने पूछा, “तो क्या मां कालीके पास प्रार्थना करनेसे           बेटी स्वस्थ हो गई ?” उन्होंने हामी भरी । तो मैंने झटसे   कहा “दादा आप तो सज्जन लगते हैं, आप कृतघ्न कैसे हो  गए ? मांने आपकी प्राणप्रिया पुत्रीको स्वस्थ किया और  आप इन साम्यवादियोंके प्रभावमें अपने धर्मकी भर्त्सना          करने लगे !” वे चुप हो गए और लज्जित भी ! सम्भवतः   उन्हें अपनी चूकका भान हो गया था । वस्तुतः कलियुगमें   अति बुद्धिवादी लोग इतने हो गए हैं कि यदि उन्हें दुःख  नहीं होता तो वे लोग ईश्वरको ही नहीं मानते; इसलिए    अगले तीन चार वर्षोंमें सभी बुद्धिजीवियोंकी बुद्धिकी   ऐसी-तैसी हो जाएगी और रामराज्य आनेपर जो भी   पुण्यवान बच जाएंगे, वे सब स्वतः ही धर्मपालन करने लगेंगे । तो चिन्ता न करें ! हिन्दू राष्ट्रमें महानगरोंमें भी स्थान देवताकी उपासना आरम्भ हो जाएगी । वर्तमानकालमें आप जो भी धर्मनिष्ठ लोग हैं, वे अपने स्थान देवताके पास उनके दर्शन हेतु जाएं । वह सम्भव न हो तो घरसे ही स्थानसे प्रार्थना करें; क्योंकि भारतके सभी महानगरोंमें भविष्यमें परमाणु बमसे आक्रमण होनेकी आशंका कुछ सन्तोंके व्यक्त की है; किन्तु अभी भी समय है, यदि महानगरोंमें रहनेवाले लोग धर्मपरायण हो जाएं तो कष्टकी तीव्रता निश्चित ही स्थान देवता न्यून कर सकते हैं ।



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