आपातकालमें देवताको ऐसे करें प्रसन्न (भाग – १७)


पिछले अंकमें हमने बताया था कि स्थान देवताओंका हमारे समष्टि जीवनको सुखी बनाए रखनेमें अत्यधिक महत्त्व होता है । मुंबईमें हमारे एक साधक है, वे मुंबई महानगपलिकामें सेवारत हैं । अभी कुछ दिवस पूर्व ही ‘एक भयावह झंझावात (तूफान) आनेवाला है’, यह जानकारी आप सभीको मिली ही होगी । उन्होंने हमें सन्देश भेजा कि मुंबईसे अत्यधिक वर्षा या आंधी इत्यादिसे उनके विभागमें अनेक समस्याएं निर्मित हो जाती हैं; इसलिए वे प्रत्येक वर्ष ब्राह्मणोंसे कुछ अनुष्ठान भी करवाते हैं, जिससे स्थिति उनके नियन्त्रणमें हो तो वे मुझसे पूछने लगे कि हमें इस ‘तूफान’की घोषणासे भय लग रहा है; क्योंकि उनके वरिष्ठ अधिकारी और समाज तो उन्हें ही कोसते हैं, ऐसेमें हम क्या करें ? मैंने कहा, “अभी जनवरी २०२४ तक प्रकृतिका प्रकोप अपने चरमपर होगा और ये समष्टि पापके कारण है; इसलिए हम कुछ विशेष नहीं कर सकते हैं, अब मात्र अपनी साधना बढाकर इसकी तीव्रताको सहन कर सकते हैं तथा आप और आपके सहकर्मी स्थान देवताके मन्दिर जाकर उन्हें शरणागत होकर प्रार्थना करें ! कल वे बता रहे थे कि उन्होंने मेरे बताए अनुसार अपने धार्मिक प्रवृत्तिके सहकर्मीके साथ स्थान देवताके मन्दिर जाकर प्रार्थना की; वह चक्रवात तो आया; किन्तु मुंबईमें, विशेषकर वे जिस क्षेत्रमें कार्यरत थे, उसमें उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पडा । इसे कहते हैं, ‘प्रत्यक्षम किम प्रमाणं’, अब सोचें ! यदि दो लोगोंद्वारा मिलकर स्थान देवताकी प्रार्थना करनेपर उन्हें अनुभूति हो सकती है तो सभी महानगरवासी यदि ऐसा करें तो ‘कोरोना’का अन्त क्या नहीं होगा ? देवतासे अधिक शक्तिशाली ‘कोरोना’ है क्या ? किन्तु महानगरोंमें विधर्मी और निधर्मी, दोनोंकी संख्या बहुत अधिक है; इसलिए ऐसे प्रकोप तो अगले चार वर्ष बार-बार आएंगे; किन्तु आपको जो बताया जाए, यदि वह करेंगे तो आप तो निश्चित ही या तो वहीं सुरक्षित रहेंगे या समय रहते वहांसे किसी न किसी निमित्त निकलकर सुरक्षित स्थानपर पहुंच जाएंगे !

स्थान देवता, ग्राम देवता, वास्तु देवताका शास्त्र हमारे मनीषियोंने ऐसे ही नहीं बताया है । इसके पीछे गूढ ज्ञान निहित है ।

हम भी देहलीमें थे; किन्तु समयसे पूर्व ही ईश्वरने हमें वहांसे सुरक्षित निकाल दिया; क्योंकि मैं सदैव ही सबको ऐसे शास्त्र बताती हूं तो देवतागण तो हमारी सहायता अवश्य ही करेंगे और इस हेतु हमें उनके प्रति बहुत ही कृतज्ञता होती है ।

स्थान देवता एवं ग्राम देवताके प्रसन्न रहनेसे सम्बन्धित और तथ्य बतानेसे पूर्व एक जिज्ञासुने जो पूछा है वह बताती हूं। उन्होंने पूछा है कि आप जयपुरके स्थान देवता और मैं जहां रहता हूं वहांके ग्राम देवताका नाम बताएं ?

स्थान देवता व ग्राम देवताका नाम यदि आपको ज्ञात नहीं है तो आपको वहींके स्थानीय वृद्धसे या स्थानीय पुरोहितसे या वहांके मूल निवासीसे पूछ सकते हैं । यदि तब भी पता न चले तो आपके क्षेत्रका जो भी सिद्ध व जाग्रत मन्दिर है, उसे ही आप स्थान देवता या ग्राम देवता मानकर धर्मपालन कर सकते हैं ।

आपमेंसे कुछ लोगोंके मनमें प्रश्न उठता होगा कि क्या विदेशमें भी स्थान देवता या ग्राम देवता होते हैं तो जी हां, वहां भी होते हैं । आपको इस सम्बन्धमें अपनी एक अनुभूति बताती हूं । यह मैं एक बार साझा कर चुकी हूं; किन्तु इस लेखके परिप्रेक्ष्यमें यह अधिक प्रासंगिक है ।

जून २०१५ में मैं ऑस्ट्रियाके विएना नगरमें धर्मयात्राके मध्य गई थी । इससे पूर्व मैं दो बार जा चुकी थी । जून २०१५ में सतत एक सप्ताहतक प्रथमविएनाके स्थानीय हिन्दू मन्दिरमें उसके पश्चात कुछ हिन्दुओंके घरोंमें प्रवचन हुआ । मैं इसके पश्चात जर्मनी चली गई । लौटतेमें वहां पुनः कुछ दिवस रुकी थी; क्योंकि मुझे मासिक पत्रिका जो उस समय ‘ऑनलाइन’ हुआ करती थी, उसका संकलन व लेखन करना था; अतः मैं वहां रहकर भी कहीं जा नहीं पाई थी । जो लोग मुझसे जुडे थे उनकी बहुत इच्छा थी कि मैं उनके साथ कहीं भ्रमण हेतु जाऊं । अस्वस्थता एवं सेवाके कारण मैं विदेश जानेपर भी कहीं जाती नहीं हूं; किन्तु उनका मन रखनेके लिए हम वहींकी डेन्युब नदीमें ‘जहाज’द्वारा भ्रमण हेतु गए थे । सम्पूर्ण यात्राका दृश्य बहुत ही सुन्दर था; क्योंकि वह पूरा मार्ग बहुत ही सुन्दर निसर्गसे होकर जाता था । मैं जहाजसे उतरकर अपनी वृत्ति अनुरूप डेन्युब नदीकी देवीको प्रणाम करने लगी कि तभी एक सुन्दर देवी नदीसे (सूक्ष्मसे) प्रकट हुई । मैंने सोचा कि यह डेन्युब देवी होगी । मैंने उन्हें प्रणाम किया और उन्हें अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए, उनसे सूक्ष्मसे संवाद करते हुए कहा कि आपकी नदीकी नैसर्गिक छटा बहुत ही मोहक है; किन्तु उस देवीने जो कहा, उससे मुझे भी सीखने हेतु मिला । उन्होंने कहा, मैं डेन्युब देवी नहीं हूं, मैं तो यहांकी स्थान देवी हूं, सैकडों वर्षसे आसुरी शक्तियोंने मुझे बन्धनमें बांध कर रखा था; किन्तु यहां वैदिक उपासना पीठके सतत इतने प्रवचन हुए कि उसके चैतन्यसे मैं बन्धनमुक्त होगई । तुम्हारे प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु प्रकट हुई हूं ।

उपासनाके सत्संगमें हम क्या बताते हैं ? यह तो आपसुनते ही हैं, यह सब विशुद्ध वैदिक ज्ञान, हमने हमारे श्रीगुरुसे सीखा है; अतः उसके चैतन्यसे वह देवी मुक्त हो गईं, यह सुनकर मुझे अपनी गुरुदेवके प्रति बहुत ही कृतज्ञता व्यक्त हुई और यह ज्ञात हुआ कि सभी स्थानोंपर स्थान देवता एवं ग्राम देवता होते ही हैं ।

एक विशेष बात बता दूं कि उस वर्ष हमने अकस्मात गुरुपूर्णिमाका स्थल इटलीसे वियना कर दिया था और स्थानीय लोगोंका कहना था कि बुधवार अवकाशका दिन नहीं है; इसलिए लोग नहीं आएंगे; किन्तु आश्चर्यकी बात यह है लगभग १०० लोग आए थे जो उस मन्दिरके सभी क्रियाशील कार्यकर्ताओंके लिए भी आश्चर्यका विषय था । तो इससे भी यह सिद्ध होता है कि यह स्थान देवताके प्रसन्न होनेके कारण ही हुआ था ।– (पू.) तनुजा ठाकुर, सम्पादक



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