अपने बच्चोंको सुखी देखना चाहते हैं तो अपने धनको शुद्ध रखें !


एक बार हमारे एक साधकके घरपर एक भ्रष्ट सेवा निवृत्त प्रशासनिक अधिकारीसे जो उनके मित्र थे, उनसे मेरी बात हो रही थी, उनके तमोगुणी वर्तन ही उनके भ्रष्ट होनेका स्पष्ट प्रमाण दे रहा था । उन्होंने कहा, मैं अपने पुत्रसे बहुत व्यथित हूं, वह मेरी कोई भी बात नहीं मानता है, बहुत प्रयास करनेपर भी उसने अपनी पढाई पूरी नहीं की । अब अपने एकत्रित धनसे उनके लिए व्यवसाय आरम्भ किया है तो वह उसमें भी ध्यान नहीं देता है क्या करूं समझमें नहीं आता है ? मैंने उनसे कहा, “आपका धन दूषित था इसलिए बेटेके संस्कार दूषित हो गए !” उन्होंने कहा, “मैं कस्टम, एक्साइज जैसे विभागमें कार्यरत रहा हूं, यहांपर रहकर यदि आप भ्रष्टाचार नहीं करना चाहें तो भी आपको विभागीय और ऊपरके दबावके कारण उत्कोच (घूस) लेना पडता है ! मैंने सोचा था मैं कुछ भी अनुचित नहीं करूंगा किन्तु वहां हम जैसे लोगोंका तो रहना ही कठिन है इसलिए मुझे विवश होकर घूस लेना पडता था । हमारे पास कोई पर्याय होता ही नहीं है ।” मैंने कहा. “यदि विवशता और विभागीय दबाव या ऊपरसे दबावके कारण आपको उत्कोच लेना ही पडता था तो आपने उसे गुप्त रूपसे कहीं दान कर देना चाहिए था, उत्कोच लेनेमें दबाव हो सकता है, अधर्मसे आये उस पैसेको दान करनेमें तो कोई विवशता नहीं थी न !” उन्होंने कहा, “मैंने एक मंदिर बनवाया है, बच्चोंके लिए अपने गांवमें विद्यालय बनवाया, फलां-फलां मंदिरमें प्रत्येक वर्ष १० लाखका अन्नदान भी करता हूं !” मैंने कहा, ‘क्या आपको जो उत्कोचके धन आते थे, आप सब गुप्त रूपसे दान करते थे ?” उन्होंने कहा, “नहीं १० से १५ प्रतिशत तक करता था, सब कैसे कर सकता हूं मुझे भी समाजमें अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखनी पडती है !” मैंने विनम्रतासे  कहा “ऐसेमें उत्कोच लेना आपकी विवशता नहीं थी, वह तो अपनी भोगकी वृत्तिकी तृप्ति हेतु आप ऐसा करते थे, ऐसा हुआ न  ।”       कुछ भ्रष्ट लोगोंको लगता है कि यदि मैं अधर्म करूं और उससे अर्जित धनसे धर्म करूं तो मेरे पाप न्यून हो जाएंगे ! ऐसे होता नहीं है, मैंने अपने शोधमें पाया है कि भ्रष्ट लोगोंके बच्चे बहुत धन होनेपर भी सुखी नहीं होते हैं और अधर्मके कारण उनके धन अशुद्ध हो जाते हैं और उससे उनके बच्चोंके संस्कार खराब हो जाते हैं या उन्हें भिन्न प्रकारके कष्ट हो जाते हैं !   एक बार प्रयागके एक भ्रष्ट अधिकारीकी बहनसे मेरा परिचय था तो उन्होंने मुझसे कहा था कि उनके भाईके दोनों पुत्रोंको श्वेत कुष्ट अल्पायुसे ही हैं !  उन्होंने मुझे पूछा कि मेरा भाई शिवभक्त फिर भी ऐसा क्यों हुआ ? ध्यान रहे, भक्त यदि भ्रष्ट हो तो ईश्वर उसे और भी कठोर दण्ड इसी जगतमें देते हैं । नास्तिकोंको तो सूक्ष्म जगतमें दण्ड मिलता है !  मैंने तो पाया है कि भ्रष्ट पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी, अधिवक्ता, चिकित्सक इत्यादिके बच्चोंको धन होते हुए भी बहुत अधिकएवं भिन्न प्रकारके  कष्ट होते हैं  ! अतः पुरुषो, अपने बच्चोंको भविष्यमें सुखी देखना चाहते हैं तो अपने धनको शुद्ध रखें ! न भष्टाचार करें और न ही उसका पोषण करें ! – पूज्या तनुजा ठाकुर, संस्थापिका, वैदिक उपासना पीठ



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