आर्थिक संकटको दूर करनेके कुछ उपाय (भाग-१५)


जिन्हें अपना सर्वांगीण विकास प्रिय है, उन्हें सूर्योदय एवं सूर्यास्तके दो समय साधना अवश्य ही करनी चाहिए । विशेषकर इस कालमें अग्निहोत्र, हवन, आरती एवं जप अत्यधिक फलदायी होता है । इससे देवताओंके तत्त्व घरमें आकृष्ट होते हैं । जहां देवता आएं वहां सुख-समृद्धि स्वतः ही आ जाती है ।
    कुछ लोग कहते हैं कि सन्ध्या समय हम कार्यालयमें रहते हैं या वाहनसे घर आ रहे होते हैं । आपसे जो होता है वह तो करें, जो सम्भव नहीं वह जाने दें ! हिन्दू राष्ट्रमें सन्ध्या समय सबकी साधना हो सके, ऐसी उपाययोजना राष्ट्रीय स्तरपर होगी; क्योंकि तब आजके समान निधर्मी प्रणाली एवं वैश्य वर्णीय शासक वर्ग नहीं होगा । जब शासक और प्रशासक वर्ग साधक होंगे तो वे  सहसाधकोंकी साधनाका विचारकर स्वयंप्रेरित होकर सब करेंगे; इसलिए तो हिन्दू राष्ट्र चाहिए !
 पूर्व कालमें पुरुष अपनी धर्मनिष्ठा व साधनाके कारण ५० से १०० लोगोंवाले अपने कुटुम्बका पालन-पोषण बडे प्रेमसे सहज ही करते थे । आज चारसे छह सदस्योंके एकल परिवारको चलानेमें भी पुरुषको अडचनें आती हैं । कुछ तो भ्रष्टाचारकर अपना परिवार चलाते हैं । सच तो यह है कि पूर्व काल समान आज न तो कोई हिन्दू मन्दिरोंमें दान करता है, न गुरुके लिए ही कुछ विशेष करता है । वृत्ति ऐसी हो गई है कि अतिथि भी नाममात्र आते हैं, ब्याहता बहन-बेटियोंको भी भेंट देनेमें भी उनके हाथ कांपते हैं । ब्राह्मणसे अर्थात पुरोहित वर्गसे तो निःशुल्क ही सब अनुष्ठान कराना चाहता है अर्थात देनेकी वृत्ति शून्य, धर्माचरण व साधना हेतु समय नहीं होता है तो भी भलेमानसको आर्थिक कष्ट होता है ।
   ध्यान रहे ! हमारी जैसी वृत्ति होती है, वैसा ही हमें सब मिलता है ।
इसलिए त्याग व साधनाकी वृत्ति आत्मसात करें !


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