आर्थिक संकटको दूर करनेके कुछ उपाय (भाग-१३)


अपने घरमें अधिक समय ‘मोबाइल’ या दूरदर्शन संचपर रज-तम प्रधान चित्रपट या धारावाहिक न देखें ! विशेषकर हिंसक व भूतहा कार्यक्रम न देखें ! इससे घरमें नकारात्मक स्पन्दन निर्माण होते हैं; फलस्वरूप घरसे सुख-समृद्धि चली जाती है ।
  संक्षेपमें यह जान लें कि आप जितना सात्त्विक रहेंगे, आपका घर, रोग व शोकसे तो मुक्त होगा ही साथ ही लक्ष्मी भी विराजेगी ।
आजकल लोग रात-दिन भ्रमणभाषपर रज-तम प्रधान कार्यक्रम देखते रहते हैं, इससे भी घरकी वास्तु नकारात्मक हो जाती है । इससे सम्बन्धित दो अनुभव साझा करती हूं ।
पिछले वर्ष अगस्तमें मैं इटली गई थी । एक साधकके घर रुकी थी; किन्तु इस बार उनके घरमें मुझे बहुत अधिक नकारात्मकता अनुभव हो थी  । मैंने सोचा आसपासकी अनिष्ट शक्तियां आ गई होंगी । एक दो दिवसमें सब सामान्य हो जाएगा; किन्तु जब पांच दिवसके पश्चात भी घरमें नकारात्मक स्पन्दन घट नहीं रहे थे तो मैंने सूक्ष्म परीक्षण किया तो ज्ञात हुआ कि उनके घरमें अनेक स्थानपर अनिष्ट शक्तियोंने उन्हें कष्ट देने हेतु अपना सूक्ष्मसे केन्द्र स्थापित कर लिया था । जब मैंने उनकी पत्नीसे पूछा (जो किसी और गुरुको मानती हैं) तो ज्ञात हुआ कि उनके पति अर्थात हमारे साधक रातभर भ्रमणभाषपर समाचार देखते रहते हैं । आपको तो ज्ञात ही है कि आजके समाचार कैसे होते हैं ? जब मैं जून २०१५ में गई थी तो उनके घरमें बहुत अच्छी शक्ति निर्माण हो गई थी; किन्तु अपनी मूर्खताके कारण उसे उन्होंने नष्ट कर दिया था । अब उसे पुनः वैसा ही करनेमें उन्हें पुनः कुछ समय लगेगा ।
ऐसा ही प्रकरण मैंने इस वर्ष देहली के एक साधकके घरमें पाया, जब मैं इस वर्ष मार्चमें उनके घर गई थी । उन्होंने मुझे अपना शयन कक्ष सोने हेतु दिया था; किन्तु उसमें इतनी नकारात्मकता थी कि तीन रात मैं सो ही नहीं पाई । मैंने सोचा कि जब ये वास्तु शुद्धि करते हैं और साधना करते हैं तो इनका घर इतना नकारात्मक कैसे हो गया ? चौथे दिवस जब उनसे पूछा तो उनकी पत्नीने भी कहा कि ये रातके दो-दो बजेतक समाचार देखते रहते हैं !
कुछ दिवस पूर्व वे कह रहे थे कि आठ माहसे वेतन नहीं मिला है । ये उदाहरण मैं इसलिए देती जिससे कि आपको आपके कष्टका कारण समझमें आए और आप अपने आचरणको सुधारें ! ध्यान रहे ! जैसे श्वेत चादरमें कोई ‘दाग’ लग जाए तो त्वरित दिखाई देता है, वैसे ही साधकके जीवनमें अंशमात्र के भी तमोगुणसे उनके कष्ट बढ जाते हैं
एक और उपासनाके कार्यकर्ता हैं, उन्हें भी भ्रमणभाषका व्यसन है, उनका आध्यात्मिक स्तर ५०% है तो भी रात-दिन भ्रमणभाषपर लगे रहनेके कारण उनसे नामजप हो ही नहीं पाता है । उनके कक्ष और घरमें नित्य क्लेश होता है और उन्हें आर्थिक कष्ट भी रहता है । इतने उच्च स्तरके होते हुए भी वे साधना नहीं करते हैं; किन्तु भावनाप्रधान होनेके कारण वे थोडी सेवा करते हैं; इसलिए उन्हें साधक कहकर सम्बोधित नहीं करती हूं !


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