हमारा जीवन एक अतिथि समान होना चाहिए । जब हम किसीके घर अतिथि बन कर जाते हैं तो हमें पता होता है कि हम उनके अतिथि हैं और हमें जो भी भोजन दिया जाता है उसे आनन्दसे ग्रहण करते हैं । उसी प्रकार हमारे जीवनके सुख-दु:ख हमने सहर्ष स्वीकार करने चाहिए । – परात्पर गुरु डॉ. जयन्त आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था
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