मोदी शासनके ‘जमात-ए-इस्लामी’पर प्रतिबन्धमें ४०० विद्यालय, ३५० मस्जिद, १००० से अधिक मदरसे सील किए गए, ३५० कट्टरपंथी भी बन्दी बनाए गए !


मार्च ६, २०१९


‘जमात-ए-इस्लामी’पर प्रतिबन्धके पश्चात घाटीमें छापेमारी जारी है । सुरक्षा विभागने अबतक ४०० विद्यालय, ३५० मस्जिद और एक सहस्रसे अधिक मदरसे बन्द कर दिए हैं ! छापेमारीके समय ‘जमात-ए-इस्लामीसे जुडे लगभग ३५० कट्टरपंथियोंको भी बन्दी बनाया गया है ।

आतंकी नेटवर्क्सकी प्राथमिक आवश्यकता धनकी होती है । दूसरी आवश्यकता वे युवा, जो मरनेके लिए सज्ज रहते हैं और तीसरी अन्य कार्यकर्ता, जो आतंकी दुर्घटनाको करवानेमें सहायक होते हैं । ‘जमात-ए-इस्लामी’ जम्मू-कश्मीर भी इन्ही तीनों आवश्यकताओंकी पूर्ति करता है ।

पुलवामा आतंकी आक्रमणका मुख्य आतंकी मसूद अजहर और उस जैसे आतंकी ‘जमात-ए-इस्लामी’के द्वारा धन उपलब्ध कराते हैं, जो स्लीपर सेलतक पहुंचते हैं । इतना ही नहीं ‘जमात-ए-इस्लामी’के मदरसों और विद्यालयोंसे युवाओंको आतंकी बनाया जाता है । जमात-ए-इस्लामी अन्य कार्य जैसे पत्थरबाजी आदिके लिए भी लोगोंको सिद्ध करता है । शासनने आतंककी इन्हीं तीन मूलपर प्रहार किया है !


उल्लेखनीय है कि १९८९ में ‘जमात-ए-इस्लामी’ पृथकतावादियोंके साथ सम्मिलित हुआ और ‘हिजबुल मुजाहिद्दीन’ बनाया ! गृहमन्त्री रहते हुए मुफ्ती मोहम्मद सईदने १९९० में ‘जमात-ए-इस्लामी’पर प्रतिबंध लगाया था ! १९७५ में लगे आपातकालमें ‘जमात-ए-इस्लामी’पर प्रथम बार प्रतिबन्ध लगाया गया और तो और हिजबुल चीफ आतंकी सैयद सलाउद्दीनको इसी संगठनने १९८७ में मतदानमें उतारा था । जमात-ए-इस्लामी आए दिन हिंदुस्तान विरोधी रैलियां भी करता है ।


 

“इस पगके लिए मोदी शासन निश्चय ही प्रशंसाका पात्र है । मस्जिदें, मदरसे आदि आतंकियोंके आश्रयस्थल हैं, यह काफी समय पूर्वसे ही कहा जाता रहा है; परन्तु इसे अनदेखाकर कोई कार्यवाही नहीं की गई, उल्टा उन्हें आश्रय दिया गया । इसीप्रकार अन्य राज्योंके कई मदरसे व मस्जिद भी इसप्रकारकी गतिविधियोंमें संलग्न है । शासन वहां भी कार्यवाहीकर प्रतिबन्ध लगाए, तभी हम आतंकका अन्त करनेकी दिशामें प्रथम पग बढा सकते हैं !”– सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : एबीपी न्यूज



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