ब्राह्मणोंकी संख्यामें गिरावट हिन्दुओंके लिए चिन्ताका विषय


गत वर्ष वृत्त प्रकाशित हुआ था कि गया, काशी, हरिद्वार आदि तीर्थक्षेत्रोंमें पितृपक्षके मध्य श्राद्ध आदि कर्मकाण्डके लिए कुशल पण्डितोंकी संख्यामें भारी गिरावट आई है और इसकी प्रत्यक्ष प्रतीति मैंने भी इन स्थानोंमें जाकर ली है । इसके पीछे दो कारण हैं, प्रथम तो यह है कि धर्मशिक्षणके अभावमें आजकी भोगवादी संस्कृतिसे जन्म-ब्राह्मण भी अछूते नहीं रहे हैं । वे अपने पुत्रोंको पुरोहित बनानेकी अपेक्षा ‘सॉफ्टवेर इंजिनियर, चिकित्सक (डॉक्टर) या प्रशासनिक अधिकारी (आईएएस अधिकारी)’ बनाना चाहते हैं और बना रहे हैं । आज भी भारतमें ‘दो’ प्रतिशत वेद-उपनिषदादि धर्मग्रन्थोंमें पारंगत, तेजस्वी कर्मनिष्ठ ब्राह्मण हैं; किन्तु उन्हें उनके कुटुम्बके योग्य रीतिसे भरण-पोषण हेतु अर्थात जीविकोपार्जन हेतु जितना दान मिलना चाहिए, समाज उन्हें वह नहीं देता है ! ‘कुरकुरे और कृत्रिम शीतपेय (कोल्ड ड्रिंक्स)’के लिए अपने आठ वर्षके बच्चेको आजके हिन्दू माता-पिता १०० रुपये निकालकर त्वरित दे देते हैं; किन्तु यदि कोई सात्त्विक ब्राह्मण, उनके घरमें होम-हवन आदि कर्मकाण्ड करने हेतु आए तो उन्हें यथोचित दक्षिणा नहीं देते हैं, ऐसेमें जो त्यागी एवं अन्तर्मुख प्रवृत्तिके ब्राह्मण होते हैं, (जिनकी संख्या अब बहुत न्यून हो चुकी है) वे अपने कुटुम्बका योग्य रीतिसे भरण-पोषण नहीं कर पाते हैं, ऐसेमें वे अपनी अगली पीढीको पुरोहिताईके स्थानपर किसी और क्षेत्रमें जीविकोपार्जन हेतु भेज दें, तो इसमें आश्चर्य कैसा ?
हिन्दुओ, ध्यान रखें, पुरोहित वर्गका अस्त्तित्वमें रहना अति आवश्यक है; क्योंकि मन्दिरकी पूजा-अर्चनासे लेकर मृत्यु उपरान्त मन्त्रोच्चारके साथ आपके मृत देहको अग्नि संस्कार देने हेतु, आपके यहांके मृत पूर्वजोंके श्राद्ध विधि हेतु, विवाह, यज्ञोपवित जैसे आवश्यक संस्कार-कर्म हेतु, धर्म एवं कर्मकाण्डके जानकार ब्राह्मणोंकी आवश्यकता आपको सदैव होगी; अतः अपने क्षेत्रके तेजस्वी और साधक वृत्तिके ब्राह्मणोंकी उपजीविका हेतु योग्य व्यवस्था करना आपका उत्तरदायित्व है, जिससे उनकी अगली पीढी पुरोहिताईकी सेवा सहर्ष स्वीकार करे !
और जन्मब्राह्मणो ! सरकारी नौकरी (शासकीय चाकरी) हेतु माथापच्ची करनेके स्थानपर ईश्वरप्रदत्त चाकरी अर्थात समाजको धर्मकी ओर उन्मुख करनेकी सेवा हेतु स्वयंमें पात्रता निर्माण करें एवं जितना मिले उसमें सन्तुष्ट रहकर अपने वर्णधर्मका परित्याग न करें और वही अपने बच्चोंसे करवाएं । सर्वशक्तिमान ईश्वर वैदिक संस्कृतिमें प्राचीन कालसे ही विप्रवर्गके योगक्षेमका वहन करते आ रहे हैं तो क्या वे आज ऐसा नहीं करेंगे ?; अतः ईश्वरपर श्रद्धा रख अपने वर्णधर्मका पालन कर ईश्वरीय कृपाके पात्र बनें और यह मैं आपको ज्ञान नहीं बांट रही हूं, अपने साधनाकालमें इस तथ्यकी मैंने प्रत्यक्षमें प्रतीति ली है कि जिसने निष्काम भावसे धर्मकी सेवा की है, उसके योगक्षेमका वहन विप्ररक्षक ईश्वरने बहुत ही उदार हृदयसे किया है । – तनुजा ठाकुर



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