चैत्र शुक्ल प्रतिपदाही वर्षारंभ के योग्‍य क्‍यों है?


संवत्सरारंभ

इसवी सन् १ जनवरीसे, आर्थिक वर्ष १ अप्रैलसे, हिंदू वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदासे, व्यापारी वर्ष कार्तिक शुक्ल प्रतिपदासे, शैक्षणिक वर्ष जूनसे आरंभ होता है । सौर वर्ष, चंद्र वर्ष व सौर-चांद्र वर्ष (लूनी सोलर), इन वर्षोंके भी अलग-अलग वर्षारंभ है । वर्ष बारह महीनोंका ही क्यों होना चाहिए?  इसका उत्तर वेदोंमें है । वेद अतिप्राचीन वाङ्‌मय है, इसमें कोई मतभेद नहीं । `द्वादशमासै: संवत्सर: ।’ ऐसा वेदवचन है । वेदोंने कहा, इसलिए वह जगत्मान्य हुआ । इन सर्व वर्षारंभोंमेंसे अधिक योग्य प्रारंभदिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा है । १ जनवरीको वर्षारंभ करनेका कोई कारण नहीं है । किसीने निश्चित किया और वह आरंभ हो गया । इसके विपरीत, चैत्र शुक्ल प्रतिपदापर वर्षारंभ करनेके नैसर्गिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक कारण हैं ।

नैसर्गिक: संवत्सरके आसपास पेडोंमें कोपल उग आते हैं, पेड-पौधे हरे-ताजे दिखाई देते हैं ।

ऐतिहासिक: इस दिन रामने वालीका वध किया । शकोंने प्राचीनकालमें शकद्वीपपर रहनेवाली एक जाति हुणोंको (एक खानाबदोश जमात । सन्पूर्व दूसरी शताब्दीमें चीनके आसपास इनका मूल निवासस्थान था ।) पराजित कर विजय प्राप्त की ।

आध्यात्मिक

१. सृष्टिकी निर्मिति: ब्रह्मदेवने इस दिन सृष्टिका निर्माण किया अर्थात् यहींसे सत्ययुगका आरंभ हुआ । इसी कारण इस दिन वर्षारंभ किया जाता है ।

२. प्रांतानुसार उत्सव मनानेकी पद्धति: संवत्सरारंभ महाराष्ट्रमें गुढीपाडवाके रूपमें मनाया जाता है । आंध्रमें उसे युगादि (तेलगू नववर्ष) कहते हैं । दक्षिण भारतमें शालिवाहन शक इस दिनसे प्रारंभ होता है ।

३. साढेतीन मुहूर्तोंमें एक: संवत्सरारंभ, अक्षय तृतीया व दशहरा, प्रत्येकका एक व कार्तिक शुक्ल प्रतिपदाका आधा, ऐसे साढेतीन मुहूर्त हैं । इन साढेतीन मुहूर्तोंकी विशेषता यह है, कि अन्य दिनों शुभकार्य हेतु मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनोंका प्रत्येक क्षण शुभमुहूर्त ही होता है ।-तनुजा ठाकुर



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