अखंड नामजपसे ईश्वरीय कृपाका संचार होता है | भक्त वह है जो एक क्षणके लिए ईश्वरीय अनुसंधानसे विभक्त नहीं होता ऐसे भक्तका प्रत्येक कर्म, यज्ञकर्म हो जाता है और उसे उसका लाभ मिलता है | सांसरिक होते हुए भी नामसंकीर्तनयोग माध्यमसे हम साधनामें अखंडता साध्य कर सकते हैं | इसका एक उदाहरण एक प्रेरक प्रसंगके माध्यमसे […]
सभी जीव प्रकृति प्रदत्त गुणोंका अनुसरण करते हैं । सभी प्राणी गुण अनरूप, स्वभावके अनुसार वर्तन करते हैं । इस संदर्भमें प्रस्तुत है एक प्रेरक कथा : एक ज्ञानी और तपस्वी सन्त थे । दूसरोंके दुख दूर करनेमें उन्हें परम आनन्द प्राप्त होता था । एक बार वे सरोवरके किनारे ध्यानमें बैठने जा रहे थे […]
दक्षिण भारतके प्रसिद्ध संत तिरुवल्लुवर एक जुलाहा थे । एक दिन वह अतीव परिश्रमसे निर्मितकी हुई साडीको लेकर विक्रयके लिए विपणि(बाजार) में बैठे ही थे कि एक युवक उनके समीप आया । उसे तिरुवल्लुवरकी साधुतापर संदेह था । उसने उनकी परीक्षा लेनेके विचारसे उस साडीका मूल्य पूछा । संतने विनीत वाणीमें दो रुपए बताया । […]
बाल गंगाधर तिलकजी के बाल्यकाल की यह घटना हैः एक बार वे घर पर अकेले ही बैठे थे कि अचानक उन्हें चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। किंतु अकेले चौपड़ कैसे खेलते? अतः उन्होंने घर के खंभे को अपना साथी बनाया। वे दायें हाथ से खंभे के लिए और बायें हाथ से अ… पने लिए खेलने […]
महाराष्ट्रमें एक महान् संत हुए हैं, उनका नाम था एकनाथ । वे सबसे प्रेम करते थे । कभी क्रोधित नहीं होते थे । एक दिन वे पूजा कर रहे थे कि एक व्यक्ति उनकी गोद में आ बैठा । एकनाथने प्रसन्न होकर कहा – “वाह ! तुम्हारे प्रेमसे मुझे अत्यंत ही आनंद मिला है ।” […]
बात उन दिनों की है, जब शिवाजी मुगल सेना से बचने के लिए वेश बदलकर इधर-उधर भटक रहे थे। इसी क्रम में एक दिन शिवाजी एक दरिद्र ब्राह्मण के घर रूके। अति निर्धनता होते हुए भी उसने शिवाजी का यथाशक्ति स्वागत – सत्कार किया। एक दिन तो वह खुद भूखा रहा, परंतु शिवाजी के लिए […]
अध्यात्मशास्त्रका अभ्यास नहीं होनेके कारण कुछ साधक अपने गुरुका या संतका आधार लेकर उनके बाह्य आचरणका अनुकरण करते हैं, परंतु ऐसा करना अयोग्य है | संतोंका मन ईश्वरसे एकरूप होता है; अतः उनके बाह्य आचरण उनके साधना को प्रभावित नहीं करते | वर्ष २००३ में एक बार हम कुछ साधकको एक संतका सानिध्य प्राप्त हुआ, […]
महाभारतका प्रसंग है । धर्मयुद्ध अपने अंतिम चरणमें था । भीष्म पितामह शैय्यापर लेटे जीवनकी अंतिम घडियां गिन रहे थे । उन्हें इच्छा मृत्युका वरदान प्राप्त था और वे सूर्यके दक्षिणायनसे उत्तरायण होनेकी प्रतीक्षा कर रहे थे । धर्मराज युधिष्ठिर जानते थे कि पितामह उच्च कोटिके ज्ञान और जीवन संबंधी अनुभवसे संपन्न हैं । अतएव […]
अनेक जिज्ञासु एवं साधक ढोंगी गुरुके चक्रव्यूहमें फंस जाते हैं; परंतु मैंने देखा है कि जिस साधकमें साधना करनेकी, ईश्वरप्राप्ति की अत्यधिक तडप हो और साधकत्त्वका प्रमाण अधिक हो तो वह यदि अयोग्य गुरुके शरणमें चला भी जाये तो गुरुतत् त्व उसका योग्य मार्गदर्शन करते हैं और उसके जीवनमें योग्य गुरुका प्रवेश स्वतः ही हो […]
एक बार गोपियोंको पता चला कि दुर्वासा ऋषि आए हुए हैं और वे यमुनाके दूसरे छोरपर ठहरे हुए हैं । गोपियां ऋषि दुर्वासाकी सेवामें व्यंजन आदि समर्पित करना चाहती थीं; किन्तु यमुनामें जल अधिक था; इसलिए पार करना कठिन था । जब गोपियोंको कोई मार्ग न मिला तब वे अपने प्रिय कृष्णके पास गईं और […]