चार्वाक तत्त्वज्ञानका त्यागकर, अपने मनुष्य जीवनको करें सार्थक !


‘जबतक जीवो खाओ, पीवो और मौज करो’, मरनेके पश्चात क्या होता है ? किसने देखा है ! हिन्दुओ, इस सत्यानाशी चार्वाक तत्त्वज्ञानकी वृत्तिने ही आज प्रत्येक घरमें रावण राज्य निर्माण किया है । घर समाजकी एक इकाई है । यदि यहां रावण राज्य है तो स्वाभाविक है समाजमें भी रावण राज्यका निर्माण होगा ही; अतः अपने विवेकका उपयोगकर परलोककी सिद्धता व आनेवाली पीढीके लिए आदर्श बननेका प्रयास अभीसे करें !
हमारी एक साधिका थीं, जो कनाडामें रहती थीं । वे एक बार उपासनाके आश्रममें दस दिवस रहने आई थीं, उसके पश्चात मेरा उनसे सम्पर्क नगण्य ही है । एक दिवस मुझे ज्ञात हुआ कि उनके शरीरमें कुछ वर्षों पश्चात कर्करोगकी पुनरावृत्ति हुई है और वे कुछ समय अस्वस्थ रहीं एवं उनका देहावसान हो गया; किन्तु आनन्दकी बात यह है कि उन्होंने अपना मनुष्य जीवन साधनाकर सार्थक कर लिया और वे मृत्युके समय ६१% आध्यात्मिक स्तर साध्य कर चुकी थीं । वे कुछ ही वर्ष पूर्व उपासनासे जुडी थीं और उन्हें मेरा व्यक्तिगत मार्गदर्शन या सत्संग भी अधिक नहीं मिला था; इसलिए उन्होंने इस स्तरको कैसे साध्य किया ? यह आपको बताती हूं ! वे जब भारतसे जा रही थीं तो उपासनाके आश्रमसे हमारे श्रीगुरुके द्वारा संकलित साधना विषयक अनेक ग्रन्थ लेकर गई थीं और वे उनका नियमित अभ्यास करती थीं एवं अपने ज्येष्ठ पुत्रको भी बताती थीं । उनके पुत्र जब उनकी अस्थि विसर्जन एवं श्राद्ध कर्म निमित्त भारत आए थे तो मुझे ज्ञात हुआ कि उन्होंने धर्म व साधनाका महत्त्व अपने पुत्रोंके मनपर भी अंकित कर दिया था ।
वे जब भी मुझसे बात करती थीं तो मात्र एक बात बार-बार कहती थीं, जैसे पितृदोषके कारण मुझे व मेरे परिवारको बहुत कष्ट हुए, वैसे ही कष्ट मरनेके पश्चात मैं अपने वंशजोंको नहीं देना चाहती हूं और न ही मैं मरनेके पश्चात गति न मिलनेके कारण अटककर सूक्ष्म जगतमें कष्ट पाना चाहती हूं; अतः मुझे बताएं कि इस हेतु क्या करना चाहिए ?
उनके घरमें तीव्र पितृदोष था और उनका पूरा जीवन इस कष्टको दूर करने हेतु प्रयास करनेमें गया । वे जीवनके अन्तिम चरणमें मुझसे मिली थीं; किन्तु उन्हें जब ज्ञात हुआ कि साधना न करनेके कारण और सम्पूर्ण जीवन भोग-विलासमें बितानेके कारण ही उनके पूर्वजोंको गति नहीं मिली थी और इसकारण वे उन्हें कष्ट देते थे तो उन्होंने एक तो अपने पूर्वजोंको गति देने हेतु जो भी वैदिक उपासना पीठके माध्यमसे बताया गया, वह सब करनेका प्रयास आरम्भ किया और साथ ही वे भी अटकें नहीं, इस हेतु गम्भीरतापूर्वक साधना करती रहीं ।
हिन्दुओ, इस प्रसंगसे सीख लें और अपने पूर्वजोंके उद्धार हेतु प्रयत्नशील हों तथा साधनाकर उच्च लोकोंमें स्थान पाएं, न कि भोगकी वृत्ति रखकर अपने व अपने वंशजोंके लिए क्लेशके द्वार खोलें !



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