दत्तात्रेय देवता कौन हैं ? (भाग- ३)


भगवान दत्तात्रेयकी जयंती मार्गशीर्ष माहमें पूर्णिमाके दिवस मनाई जाती है। दत्तात्रेयमें ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं, इसीलिए उन्हें ‘परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु’ और ‘श्री गुरुदेव दत्त’ भी कहा जाता है । उन्हें देवताओंका भी गुरु माना जाता है; इसलिए उन्हें गुरुदेवके रूपमें भी सम्बोधित करते हैं । ब्रह्माजीके मानसपुत्र, महर्षि अत्रि इनके पिता तथा कर्दम ऋषिकी कन्या और सांख्यशास्त्रके प्रवक्ता कपिलदेवकी बहन, सती अनुसूया इनकी माता थीं । श्रीमद्भागवतमें महर्षि अत्रि एवं माता अनुसूयाके यहां त्रिदेवोंके अंशसे तीन पुत्रोंके जन्म लेनेका उल्लेख मिलता है ।

पुराणोंके अनुसार, इनके तीन मुख और छह हाथोंवाला त्रिदेवमयस्वरूप है । चित्रमें इनके पीछे एक गाय तथा इनके आगे चार कुत्ते दिखाई देते हैं । औदुंबर(गूलर) वृक्षके समीप इनका निवास बताया गया है । विभिन्न मठों, आश्रमों और मंदिरोंमें इनके इसी प्रकारके चित्रका दर्शन होता है ।

ऐसी मान्यता है कि हिंदू धर्मके त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेशकी प्रचलित विचारधाराके विलयके लिए ही भगवान दत्तात्रेयने जन्म लिया था; इसीलिए उन्हें त्रिदेवका स्वरूप भी कहा जाता है । दत्तात्रेयको शैवपंथी शिवका अवतार और वैष्णवपंथी विष्णुका अंशावतार मानते हैं । दत्तात्रेयको नाथ संप्रदायकी नवनाथ परंपराका भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदायके प्रवर्तक भी दत्तात्रेय ही हैं । भगवान दत्तात्रेयने वेद और तंत्र मार्गका विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था ।



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