‘जागृत भव’ गुटके एक पाठक श्री पाण्डेयजीने, दाह- संस्कार हेतु मृत शरीरको ले जाते समय ‘राम नाम सत्य है’ कहनेकी अपेक्षा ‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप वर्तमान कालमें करना चाहिए, मेरे इस लघु लेखपर इसप्रकारसे शंका व्यक्त की है - राम नामके (जो सर्वव्यापी हैं) स्थानपर ‘श्री गुरुदेव दत्त’के (महाराष्ट्र आदि प्रचलित) नामका प्रयोग मृत देह ले जाते समय उचित प्रतीत नहीं होता ।


‘जागृत भव’ गुटके एक पाठक श्री पाण्डेयजीने, दाह- संस्कार हेतु मृत शरीरको ले जाते समय ‘राम नाम सत्य है’ कहनेकी अपेक्षा ‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप वर्तमान कालमें करना चाहिए, मेरे इस लघु लेखपर इसप्रकारसे शंका व्यक्त की है – राम नामके (जो सर्वव्यापी हैं) स्थानपर ‘श्री गुरुदेव दत्त’के  (महाराष्ट्र आदि प्रचलित) नामका प्रयोग मृत देह ले जाते समय उचित प्रतीत नहीं होता ।
यह शंका अनेक उत्तर भारतीयोंके मनमें उभर सकती है या उभरती भी है; अतः समष्टि हितार्थ इसका विस्तारसे कुछ भागोंमें उत्तर देनेका प्रयास कर रही हूं ।  
सर्वप्रथम देवी-देवताओंको प्रान्तोंमें न बांधे, जबसे सृष्टिकी उत्पत्ति हुई है और जब तक रहेगी, वे सर्वव्यापी तत्त्वके रूपमें विद्यमान रहनेवाले हैं ! अत्यन्त विनम्रतासे यह बताना चाहूंगी कि दत्तात्रेय देवता मात्र महाराष्ट्रमें अधिक प्रचलित देवता हैंं; रामके भक्त सर्वत्र हैं, इसलिए वे उनसे अधिक शक्तिशाली हैं या सर्वव्यापी हैं, यह कहना आपकी अज्ञानता है ।  श्रीविष्णुके २४ अवतारोंमें दत्तात्रेय देवता छठे अवतार हैं, इसका उल्लेख अनेक धर्मग्रन्थोंमें है ।
श्रीमद्भागवतमें अवतारोंकी मुख्यतः दो सूचियां हैं । दोनोंको मिलाकर २४ अवतारोंके नाम इस प्रकार हैं, भिन्न ग्रन्थोंके अनुसार इनके नाम और क्रममें थोडा पाठभेद हो सकता है; किन्तु विष्णुके २४ अवतारोंमें दतात्रेयका अवतार अवश्य ही माना जाता है ।  विष्णुके २४ अवतारोंके नाम इसप्रकार हैं –
१. श्री सनकादि मुनि, २. पृथु ३. वराह अवतार ४. यज्ञ (सुयज्ञ)  ५. कपिल मुनि ६. दत्तात्रेय अवतार ७. नर-नारायण ८. ऋषभदेव ९. हयग्रीव १०. मत्स्य अवतार  ११. कूर्म अवतार १२. धन्वन्तरि १३. मोहिनी अवतार १४. नृसिंह १५. वामन अवतार १६. हयग्रीव अवतार १७. श्रीहरि अवतार  १८. परशुराम अवतार १९. नारद २०. महर्षि वेदव्यास २०. हंस अवतार २१. श्रीराम अवतार २२. श्रीकृष्ण अवतार २३. बुद्ध अवतार २४. कल्कि अवतार
अब यदि वर्तमान समयमें अधिकांश जन्म-ब्राह्मण परशुराम भगवानको अधिक मानते हैं तो वे ब्राह्मणोंके देवता हैं, ऐसा कहना पूर्णत: अनुचित होगा ! जन्म-ब्राह्मण इस विशेषणका इसलिए उपयोग कर रही हूं; क्योंकि वर्ण-ब्राह्मण ऐसा भेदभाव नहीं करते हैं ! उनके लिए सभी अवतार पूजनीय एवं एक समान होते हैं !
दत्तात्रेयको महाराष्ट्रका देवता, कालीको बंगालकी देवी, वैष्णवी माताको जम्मूकी देवी, कार्तिकेयको दक्षिणका देवता कहना एवं इसलिए ये रामसे कम व्यापक हैं, कम शक्तिशाली हैं, यह कहना संकीर्णताका एवं अज्ञानताका द्योतक होगा ! प्रत्येक प्रान्त अनुसार वहांके लोगोंके लिए जिस तत्त्वकी आवश्यकता होती है, वहांके लोग उस तत्त्वकी अधिक प्रमाणमें आराधना करते हैं, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इन्दौरके महाकालसे द्वारिकाके कृष्णकी शक्ति न्यून है ! वे सभी एक ही परमात्माके कार्यानुरूप भिन्न तत्त्व हैंं ! इस प्रश्नका और अधिक विश्लेषण अगले दिवस करूंगी । (क्रमश: )



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