दत्तात्रेय देवता कौन हैं ? (भाग- ६)


दत्तात्रेय शीघ्र कृपा करनेवाले देवताकी साक्षात मूर्ति कहे जाते हैं ।  परम भक्त वत्सल दत्तात्रेय, भक्तके स्मरण करते ही उसके पास पहुंच जाते हैं, इसीलिए इन्हें ‘स्मृतिगामी’ तथा ‘स्मृतिमात्रानुगन्ता’ भी कहा गया है । ये विद्याके परम आचार्य हैं; इसलिए उन्हें गुरुरूपमें सम्बोधित किया जाता है ।
हिन्दू मान्यताओंके अनुसार, दत्तात्रेयने पारदसे व्योमयान उड्डयनकी शक्तिका पता लगाया था और चिकित्सा शास्त्रमें क्रान्तिकारी अन्वेषण किया था, इसलिए इन्हें वैज्ञानिक भी माना जाता है । ज्ञान वैराग्य पूर्ण ‘अवधूत गीता’ इनका अलौकिक ग्रन्थ है।
हिन्दू धर्मके त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेशकी प्रचलित विचारधाराके विलयके लिए ही भगवान दत्तात्रेयने जन्म लिया था, इसीलिए इन्हें त्रिदेवका स्वरूप भी कहा जाता है । दत्तात्रेयको शैवपंथी शिवका अवतार और वैष्णवपंथी विष्णुका अंशावतार मानते हैं । दत्तात्रेयको नाथ सम्प्रदायकी नवनाथ परम्पराका भी अग्रज माना है।

दत्त एवं उनकी वस्तुओंका भावार्थ
दत्तात्रेय देवतामें ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश, इन त्रिदेवोंके तत्त्व हैं । उनके हाथमें ब्रह्मदेवके कमण्डल एवं जपमाला हैं, विष्णुके शंख एवं चक्र हैं तथा शिवजीके त्रिशूल एवं डमरू हैं । इनमें से प्रत्येक वस्तुका विशिष्ट भावार्थ है, उदा. कमण्डल त्यागका प्रतीक है । दत्तात्रेय देवताके कंधेपर एक झोली भी होती है । उसका भावार्थ इस प्रकार है । झोली, मधुमक्खीका प्रतीक है । जिस प्रकार मधुमक्खी विभिन्न स्थानोंपर जाकर मधु एकत्रित करती है, उसी प्रकार दत्तात्रेय सर्वत्र विचरणकर झोलीमें भिक्षा जमा करते हैं । घर-घर जाकर भिक्षा मांगनेसे अहं शीघ्र न्यून होता है । इसलिए झोली, अहंके नष्ट होनेका प्रतीक है ।

दत्त एवं उनका परिवार
दत्तात्रेय देवताकी विशेषता है कि वे कभी भी अकेले नहीं दिखाई देते, सपरिवार होते हैं । परिवारका आध्यात्मिक अर्थ इस प्रकार है ।
अ. दत्तात्रेय देवताके पीछे जो गाय है, वह पृथ्वी एवं कामधेनुका प्रतीक है ।
आ. चार कुत्ते, चार वेदोंके प्रतीक हैं । गाय एवं कुत्ते, एक प्रकारसे दत्तात्रेय देवताके अस्त्र भी हैं । गाय अपने सींग मारकर एवं कुत्ते काटकर शत्रुसे रक्षण करते हैं ।
इ. औदुम्बर यानी गूलरका वृक्ष दत्तात्रेयका पूजनीय रूप है; क्योंकि उसमें दत्त तत्त्व अधिक होता है ।



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