देशी गाय धैर्य, समृद्धि, आर्थिक एवं आध्यात्मिक सम्पन्नताका दूसरा नाम है । जब भी गोसेवा और गायके महत्त्वकी चर्चा होती है, उसका केन्द्र-बिन्दु भारतीय प्रजातिकी गायें ही होती हैं, जिन्हें सामान्य वार्तालापकी भाषामें देशी गाय कहा जाता है; परन्तु आज यह हमारे देशका दुर्भाग्य है कि एक ओर जहां हमारी देशी गायोंका संरक्षण एवं संवर्धन दक्षिणी अमेरिकी और यूरोपीय देशोंमें किया जा रहा है, वहीं अधिकांश भारतीयोंको यह भी ज्ञात नहीं है कि देशी गाय कहते किसे हैं और उनकी कितनी प्रजातियां हैं ? देशी गायकी प्रजातियोंपर चर्चा करनेसे पूर्व यह जानना आवश्यक है कि देशी गाय और विदेशी गायमें क्या अन्तर है ?
१. देशी गायमें ककुद (अर्थात पीठपर ऊपरकी ओर उठा हुआ कुबड, जिसमें सूर्यकेतु नाडी होती है) होता है, विदेशी गायमें यह नहीं होता है, उसकी पीठ सपाट होती है ।
२. देशी गायका गल-कम्बल (गलेके नीचेकी त्वचा जो लटकती रहती है) होता है, जबकि विदेशी गायमें गल-कम्बल कसा हुआ होता है ।
३. तीसरा अन्तर होता है देशी गायके सींग, जोकि सामान्यसे लेकर बडे आकारके होते हैं, जबकि विदेशी गायके सींग या तो होते ही नहीं हैं या अत्यन्त छोटे होते हैं ।
४. देशी और विदेशी गायमें त्वचाका भी अन्तर होता है अर्थात गौमाताकी त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है, जबकि विदेशी गायकी त्वचा बहुत संकुचित एवं अधिक संवेदनशील नहीं होती है ।
५. देशी गायकी पूंछ विदेशी गायकी पूंछसे अपेक्षाकृत लम्बी होती है ।
दुःखकी बात यह है कि उत्तर-भारतमें पाई जानेवाली अधिकांश गायें देशी होते हुए भी देशी नहीं हैं । विगत कई दशकोंसे विभिन्न केन्द्र एवं राज्य शासनोंद्वारा चलाए गए तथाकथित “प्रजाति-सुधार” कार्यक्रमने देशी गायोंकी प्रजातिको अशुद्ध कर दिया है एवं अब तो मात्र ‘डीएनए’ परीक्षणद्वारा ही ज्ञात हो सकता है कि विशुद्ध प्रजातिकी देसी गाय कौन सी है ? अधिक दूधके लोभमें अथवा अज्ञानतामें पशुपालकोंने भी इस तथ्यपर ध्यान नहीं दिया और इसका दुष्परिणाम वर्ण-संकर प्रजातियोंके रूपमें हमारे समक्ष है ।
हमारी शासन व्यवस्था ‘श्वेत क्रान्ति’का श्रेय लेते हुए दुग्ध उत्पादनमें वृद्धिको अपनी उपलब्धि बताता रहा है; परन्तु यह तथ्य मिथ्या और भ्रामक है; क्योंकि इस तथाकथित क्रान्तिसे दुग्धके उत्पादनमें तो वृद्धि हुई है; परन्तु इसके कारण देशी गायोंसे ध्यान हटाकर अधिक दूध देनेवाली जर्सी, होल्स्टीन फ्रीजियन, ब्राउन स्विस आदि विदेशी प्रजातिके गायोंके पालनपर अधिक ध्यान दिया गया है । जबकि इनके दूधकी देशी गायके दूधसे तुलना करना भी एक प्रकारका पाप ही है । देशी गायका दूध अमृत होता है और विदेशी गायोंका दूध विष समान ही होता है, साथ ही अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगोंका जन्मदाता है । इसप्रकार देशी गायके दूधको अमृत कहनेके पीछे मात्र हमारी आस्था या धार्मिक मान्यता ही नहीं है; अपितु ऐसा कहनेका आधार देशी गायके दूधकी औषधीय विशिष्टताएं और इसकी सात्त्विकता है ।
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