धर्मविहीन भोगवादी संस्कृति ही आसुरी संस्कृति


हम अधिकांश हिन्दू, बिना धर्मके अपने जीवनकी कल्पना नहीं कर सकते हैं; किन्तु जब धर्मयात्रा अन्तर्गत विदेश गई तो मुझे ज्ञात हुआ वहां एक ऐसी मानव प्रजाति भी हैं जो बिना धर्मके सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देती है । मैंने विदेशमें देखा कि वहांके अनेक निधर्मी लोगोंको अपने जीवनका उद्देश्य ही ज्ञात नहीं होता, क्षणिक एवं नश्वर सुख भोगना ही उनके जीवनका उद्देश्य होता है । उनके मुख तो ‘मेकअप’से पुते होते हैं; परन्तु मुख तेजस विहीन, जीवन प्रेमविहीन होता है । एक ही जीवनकालमें अनेक सहचरोंको अपने शारीरिक सुख हेतु परिवर्तित करते रहना, भौतिक सुखप्राप्तिमें उलझे रहना, कुटुम्ब व्यवस्थासे दूर रहकर नीरस सा जीवन व्यतीत करना, यह सब उनके जीवनका अविभाज्य भाग है । दिखावटी मुस्कान, दिखावटी प्रेम, निधर्मी उद्देश्यहीन जीवन, व्यसनाधीनता, यह सब देखकर समझमें आया कि धर्मविहीन ऐश्वर्ययुक्त जीवन जो भौतिकवादसे लिप्त है, वह ही आसुरी संस्कृति है एवं मानवमात्रके कल्याण हेतु सम्पूर्ण विश्वमें हिन्दू धर्मराज्य की स्थापना करना अत्यन्त आवश्यक है । आश्चर्य और क्षोभका तथ्य यह है कि यह पाश्चात्य शिवत्वविहीन भौतिकतावादी कुसंस्कृति, भारतीयोंको भी अति प्रिय लगने लगी है एवं यहां भी विवेकहीन तमोगुणी तथाकथित बुद्धिजीवी एवं नास्तिक वर्गमें वृद्धि होने लगी है जो इस दैवी वैदिक संस्कृतिके लिए अत्यन्त घातक है – तनुजा ठाकुर



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