एक साधिकाको जब भी मैं कहती कि आप अपनी साधना बढानेका प्रयास करें तो वे कहती पहले मेरा अमुक-अमुक कार्य हो जाए, तत्पश्चात करूंगी !
साधको ! अध्यात्ममें यह ‘बनिया बुद्धि’ न लगाएं, इसे साधकत्व नहीं कहते, ईश्वरको ऐसे भक्त कभी प्रिय नहीं होते, यह ध्यान रखें ! निष्काम भावसे नामजप और सेवा करते जाएं, भगवान सर्वशक्तिमान है, उन्हें ज्ञात है, आपके लिए क्या आवश्यक है ?, क्या आवश्यक नहीं है ? यदि आप साधनारत हैं तो आपके योगक्षेम एवं आध्यात्मिक प्रगति हेतु जो आवश्यक एवं पूरक होगा, वे देंगे ही, यह विश्वास रखें ! – तनुजा ठाकुर (२७.३.२०१५)