अधिकांशत: विदेश जाने वाले हिन्दुओंको भारतका अध्यात्मिक महत्त्व ज्ञात ही नहीं है


कुछ दिवस पूर्व एक स्त्रीका हमारे पास दूरभाष आया कि वे मेरे लेखसे प्रेरित होकर विदेश छोड भारत लौट आई हैं ! यथार्थ तो यही है कि आज अधिकांशत: विदेश जाने वाले हिन्दुओंमें अपने देशके प्रति धर्माभिमान अल्प है या उन्हें भारत जैसे देशका अध्यात्मिक महत्त्व ज्ञात ही नहीं है ! मैंने पाया है कि विदेश जाकर बसनेको, आजका हिन्दू एक विशेष सामाजिक प्रतिष्ठाकी दृष्टिसे देखने लगा है जो कि अत्यंत घातक एवं चिन्तनीय वस्तुस्थिति है । स्वार्थ एवं क्षणिक सुखमें अंधे हुए हिन्दू विदेश जाकर बस जानेपर  दो-तीन पीढीके पश्चात उनके कुलकी अगली पीढीकी स्थिति क्या होगी ? इसकी वे कल्पना भी नहीं करते हैं । क्षणिक सुखके लिए अपनी अगली पीढीको भोग और अधर्मकी ओर धकेलनेवाले आपके कभी शुभचिन्तक नहीं हो सकते हैं । यह ध्यान रखें, चाहे वह आपके माता-पिता ही क्यों न हों ! विदेश जानेपर न ही व्यवस्थित रूपसे धर्मपालन हो पाता है और न ही भारत जैसे सात्विक भूमिका आध्यात्मिक लाभ ही मिलता है ! – तनुजा ठाकुर (३१.१२.२०१४)



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