फिल्मी जगत


जब चित्रपट (फिल्मी) जगतका कार्य आरम्भ हुआ था, तब किसी भी सभ्य कुलकी स्त्री इसमें अभिनय करने हेतु सिद्ध नहीं थी और मात्र कुछ वैश्याओंने, इसमें अभिनय हेतु आवेदन दिए थे । आजसे कुछ दशक पहलेके लोगोंमें इतना द्रष्टापन तो था कि यह सभ्य स्त्रियोंके कार्य करनेका क्षेत्र नहीं है और उन्हें सम्भवत: यह भी भान हो गया होगा कि भविष्यमें ये तथाकथित कलाकार, निर्देशक इत्यादि, वासनाके पूजारी होंगे और आज वासना व हिंसाका प्रचार प्रसार कर इस मायावी जगतके लोग, नयी पीढीको दिशाभ्रमित करने लगे हैं ! इन धनके पुजारियोंने बच्चोंसे उनका बचपन तक छीन लिया है ! पहले रामायण, सन्तोषी मां जैसी फिल्में भी बनती थीं, अब डर्टी पिक्चर, बेगम जान, हसीना पारकर, हरामखोर और बैंक चोर जैसी नामोंवाली चित्रपट ही अधिकांशत: बनती हैं ! इनके नामोंसे ज्ञात होता होगा कि ये कलाके नामपर क्या परोसते होंगे और हमारा यह नपुंसक शासन ऐसे चित्रपटको समाजको दिखानेकी अनुमति देता हैं !, ऐसेमें मूक बधिर, नाबालिग लडकियोंको नरपिशाच अपने वासनाका शिकार बनाएं तो इसमें आश्चर्य कैसा ! – तनुजा ठाकुर



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